Book Title: Aacharya Kundakunda Dravyavichar
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 86
________________ 65 सयमेव [(सय) + (एव)] सय (अ) = स्वय एव (प्र) = ही जधादिच्चो [(जघा)+ (आदिच्चो)] जहा (अ) = जिम प्रकार आदिच्चो (प्रादिच्च) 1/1 तेजो (तेज) 1/1 उण्हो (उण्ह) 1/1 य (अ) = तथा देवदा (देवदा) 1/1 रणभसि (णभसि)7/1 अनि सिद्धोवि [(सिद्धो)+ (अपि)] सिद्धो (सिद्ध) 1/1 अपि (अ) = भी तघा = उमी प्रकार खाणं (णाण) 1/1 सुह (सुह) 1/1 च (अ) = और लोगे (लोग) 7/1 तथा (प्र) = तथा देवो (देव) 1/1 वि । 65 सयमेव = स्वय ही। जघादिच्चो= जिम प्रकार सूर्य । तेजो प्रकाश । उण्हो= उष्ण । य% तथा । देवदा % दिव्य शक्ति । गभसिआकाश मे। सिद्धोवि = सिद्ध भी। तथा उसी प्रकार । णाणं = ज्ञान । सुह = सुख । च = और । लोगे = लोक मे । तघा तथा । वेवो = दिव्य । 66 परिणमदि (परिणम) व 3/1 अक जदा (अ) = जव अप्पा (अप्प) 1/1 सुहम्मि (सुह) 7/1 असुहम्मि (असुह) 7/1 रागदोसजुदो [(राग)(दोस)-(जुद) भूक 1/1 अनि] त (त) 2/1 सवि पविसदि (पविस) व 3/1 सक कम्मरय [(कम्म)-(रय) 1/1] णाणावरणादिभावेहि [(णाणावरण) + (यादि)+ (भावेहि)] [(णाणावरण)-(आदि)(भाव) 3/2] 1 'गमन' अर्थवाली क्रिया (पविसदि) के साथ द्वितीया हुआ है । 66 परिणमदि = रूपान्तरित होता है । जदा = जव । अप्पा%= प्रात्मा । सुहम्मि = शुभ मे। असुहम्मि = अशुभ मे । रागदोसजदो = राग-द्वेप से जकडा हुआ । त= उसको- उसमे । पविसदि= प्रवेश करता है । कम्मरय = कर्मरज । णाणावरणादिभावेहि = ज्ञानावरणादि रूप परिणामो द्वारा। 67 ज (ज) 2/1 सवि कुणदि (कुण) व 3/1 सक भावमादा [(भाव) + (आदा)] भाव (भाव) 2/1 आदा (पाद) 1/1 कत्ता (कत्तु) 1/1 वि सो (त) 1/1 सवि होदि (हो) व 3/1 अक तस्स (त) 6/1 स भावस्स (भाव) 6/1 कम्मत्त (कम्मत) 2/1 परिणमदे (परिणम) व 3/1 सक तम्हि (त) 7/1 स सय (अ) = अपने आप पोग्गल (पोग्गल) 1/1 दन्व (दव्व) 1/11 70 प्राचार्य कुन्दकुन्द

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