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= दन्व+अधम+अक्खं = उस अधर्मास्तिकाय नामवाले द्रव्य को । जाणेह = जानो। हिदिकिरियाजुत्ताण = स्थिति क्रिया मे तत्पर के लिए। कारणभूव = कारण बना हुआ । तु= किन्तु । पुढवी- पृथ्वी । वकी तरह ।
130. ण (अ) = नही य (प्र) = तथा गच्छदि (गच्छ) व 3/1 सक धम्मत्थी
(धम्मत्थि) 1/1 गमण (गमण) 2/1ण (प्र) = नही करेवि (कर) व 3/1 सक अण्णदवियस्सा [(अण्ण)-(दविय) 6/1] हदि (हव) व 3/1 अक गती (गति) 2/2 स (स) मूलशन्द 3/1 वि पसरो (प्पसर) 1/1 जीवाण (जीव) 6/2 पुग्गलाण (पुग्गल) 6/2 च (म) = और । 1 कभी-कभी द्वितीया के स्थान पर पष्ठी का प्रयोग पाया जाता है
(हे प्रा व्या-3-134)। 2 कभी-कभी सप्तमी के स्थान पर द्वितीया का प्रयोग पाया जाता है
(हे प्रा व्या-3-137) । 130 = नही । य= तथा । गच्छदि = गतिशील नही होता है । धम्मत्यो =
धर्मास्तिकाय । गमण = गति । = नही । करेदि प्रदान करता है। अण्णदवियस्स = दूसरे द्रव्यो को । हदि = होता है । गती = गति के+ गति मे । स= स्व से। पसरो- फैलाव । जीवाणं = जीवो (की) । पुग्गलाण - पुद्गलो की । च= और ।
131 विजवि (विज्ज)व 3/1 अक जेसि (ज)6/2 स गमण (गमण)1/1 ठाणं
(ठाण) 1/1 पुण (म) - फिर तेसिमेव [(तेसि) + (एव) तेसिं (त) 6/2 स एव (म) = ही सभवदि (सभव) व 3/1 अक ते (त) 1/2 सवि सगपरिणामेहि [(सग) वि- (परिणाम) 3/2] दु (प्र) = प्रत गमण (गमण) 2/1 ठाण (ठाण) 2/1 च (अ) = और कुव्वति (कुन्व) व 3/2 सक।
131 विजदि = होती है । जेसि = जिन की । गमण = गति । ठाणं = स्थिति ।
पुरण = फिर । तेसिमेव - उन्ही की । सभवदि = होती है । ते=वे । सगपरिणाहिं - अपने परिणमन के द्वारा।दु-प्रत । गमणं = गति (को)। ठाण - स्थिति को । चौर । कुवति = उत्पन्न करते हैं ।
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आचार्य कुन्दकुन्द