Book Title: Aacharya Kundakunda Dravyavichar
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 114
________________ व्यय और ध्र वतामय । सप्पडिवक्खा = विरोधी पहलू सहित । हवदि = होती है । एक्का-एक । 141 उत्पत्ती (उप्पत्ति) 1/1 व = और विणासो (विणास) 1/1 दव्वस्स (दव्व) 6/1 य (अ) = ही गत्यि - न अस्थि (अ) = है (अस्तित्व) सन्भावो (सव्माव) 1/1 विगमुप्पादधुवत्त [(विगम)+ (उप्पाद)+ (धुवत्त) ] [(विगम)-(उप्पाद)-(धुवत्त) 2/1] करेंति (कर) व 3/2 सक तस्सेव [(तस्स) + (एव)] तस्स (त) 6/1 स एव (अ) = ही पज्जाया (पज्जाय) 1/2 । उप्पत्ती = उत्पत्ति । व% और । विणासो= विनाश | दव्वस्स = द्रव्य की। यही । पत्थिन । अत्यि = अस्तित्व । सम्भावो= स्वभाववाला । विगमुप्पादधुवत्त = नाश, उत्पत्ति, ध्र वता। करति = प्रकाशित करती हैं । तस्सेव उसकी ही । पज्जाया = पर्यायें । 142 पज्जयविजुद [(पज्जय)-(विजुद) 1/1 वि] दव्व (दव) 1/1 दम्वविजुत्ता [(दव्व)-(विजुत्त) 1/2 वि] य (अ) = भी पज्जया (पज्जय) 1/2 पत्थि (अ) = नही है दोण्ह (दो) 6/2 अणण्णभूद [(अणण्ण)-(भूद) भूकृ 1/1 अनि भाव (भाव) 1/1 समणा (समण) 1/2 पविति (परूव) व 3/2 सक आर्ष । 142 पज्जयविजुद = पर्यायरहित । दव्व = द्रव्य । दवविजुत्ता - द्रव्यरहित । य= भी । पज्जया = पर्याय । रात्थि % नही है । दोण्ह = दोनो का । अणण्णभूद = अभिन्न वना हुआ । भाव = अस्तित्व । समणा-श्रमण । पविति = कहते हैं । 143 दव्वेण (दव्व) 3/1 विणा (अ) = बिना । रण (अ) = नही गुणा (गुण) 1/2 गुहिं (गुण) 3/2 दव्व (इन्व) 1/1 ण (अ) = नही सभवदि (सभव) व 3/1 अक अव्वदिरित्तो (अ-व्वदिरित्त) भूक 1/1 अनि भावो (भाव) 1/1 दव्वगुणाण [(दव्व)-(गुण) 6/2] हवदि (हव) व 3/1 अक तम्हा = इसलिए । 143 दव्वेण = द्रव्य के । विणा= बिना । रण = नही । गुणा = गुण । गुणेहि = गुणो के । दव्य = द्रव्य । विणा = बिना । सभवदि = होता है । अन्वदिरितो = अभिन्न । भावो= अस्तित्व । दव्वगणाण = द्रव्य और गुणो का । हवदि = होता है । तम्हा = प्रत । 98 प्राचार्य कुन्दकुन्द

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