Book Title: Aacharya Kundakunda Dravyavichar
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 112
________________ 135 सम्भावसभावाण [(सन्माव) - (सभाव)16/2] जीवाण (जीव) 6/2 तह य (अ) = उसी प्रकार पोग्गलाण (पोग्गल) 6/2 च (अ) = और परियट्टणसंभूदो [(परियट्टण) - (सभूद) भूकृ 1/1 अनि] कालो (काल) 1/1 रिणयमेण (क्रिविन) = अनिवार्यत पण्णत्तो = कहा गया । 1 कभी कभी सप्तमी के स्थान पर पष्ठी का प्रयोग पाया जाता है (हे प्रा व्या 3-134)। 135 सम्भावसभावाण = अस्तित्व स्वभाववाले। जीवाणं = जीवो (मे) । तह य= उसी प्रकार । पोग्गलाण = पुद्गलो मे । च (अ) = और । परियट्टण. सभूदो परिवर्तन, उत्पन्न हुआ । कालो-काल । णियमेण = अनिवार्यत । पण्णत्तो कहा गया। 136 पत्थि (अ) = नही चिर (अ) = दीर्घ काल वा = और खिप्प (अ) = तुरन्त मत्तारहिदं [(मत्ता)- (रहिद) 1/1 वि] तु (प्र) = तथा सा (ता) 1/1 सवि वि (प्र) = भी खलु (अ) = पादपूरक मत्ता (मत्ता) 1/1 पुग्गलदव्वेण [(पुग्गल) - (दव्व) 3/1] विणा (अ) = विना सम्हा (अ) = इसलिए कालो (काल) 1/1 पड़च्चभवो [(पडुच्च) अप्राश्रय करके - (भव)11/1 वि । 1. समास के अन्त मे। 136 णत्यि = नही । चिर = दीर्घकाल । वा= और । खिप्पं = तुरन्त । मत्ता रहिद = माप के विना । तु= तथा । सा= वह । वि = भी । मत्ता= माप । पुग्गलदग्वेण = पुद्गल द्रव्य के । विणा = विना । तम्हा= इसलिए । कालो काल । पडुच्चभवो= आश्रय से उत्पन्न । 137 कालो (काल) 1/1 परिणामभवो [(परिणाम) - (भव) 1/1 वि] परिणामो (परिणाम) 1/1 दवकालसंभूदो [(दवकाल)-(सभूद) भूकृ 1/1 अनि] दोण्ह (दो) 6/2 वि एस (एत) 1/1 सवि सहावो (सहाव) 1/1 कालो (काल) 1/1 खणमगुरो (खणभगुर)1/1 वि णियदो (णियद) 1/1 वि ।। 137 कालो काल । परिणामभवो = परिवर्तन से उत्पन्न । परिणामो= परिवर्तन । दन्वकालसभूदो = द्रव्य काल से उत्पन्न । दोण्हं = दोनो का । एस = यह । सहावो स्वभाव । कालो-काल । खरणभंगुरो- नश्वर । णियदो स्थायी। 96 आचार्य कुन्दकुन्द

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