Book Title: Aacharya Kundakunda Dravyavichar
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Jain Vidya Samsthan
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138 जीवादीदव्वाण [(जीव) + (प्रादी) + (दव्वाण)] [(जीव)-(आदी)
(दव्व) 612] परिवट्टकारण [(परिवट्टण)- (कारण) 1/1] हवे (हव) व 3/1 अक कालो (काल) 1/1 धम्मादिचउण्णाण [(धम्म) + (आदि) + (चउ) + (अण्णाण)] [(धम्म)-(आदि)-(चउ)-(अण्ण)1 6/2 वि] सहावगुणपज्जया [(स) वि-(हाव)-(गुण)-(पज्जय) 1/2] होति (हो) व 3/2 अक । 1 कभी-कभी सप्तमी के स्थान पर षष्ठी का प्रयोग पाया जाता है
(हे प्रा व्या 3-134) अण्णाण→ ण्णाण (स्वरलोप, पृ 123,
अभिनव प्राकृत व्याकरण) । 138 जीवादीदव्वाण = जीव आदि द्रव्यो के । परिवदृरणकारण = परिवर्तन का
कारण । हवे = होता है । कालो = काल । धम्मादिचउण्णाण = धर्मादि चार अन्य । सहावगुणपज्जया = स्वभावगुणपर्याय । होति = होती हैं ।
139 दव्व (दब) 1/1 सल्लखरिणय (सल्लक्खणिय) 1/1 वि
उत्पादन्वयधुवत्तसजुत्त (उत्पाद) - (व्वय) - (धुवत्त)-(सजुत्त) भूक 1/1 अनि] गुणपज्जयासय [(गुण) + (पज्जय)+ (आसय)] [(गुण)(पज्जय)-(आसय) 1/1] वा (अ) = और ज (ज) 1/1सवि त (त) 1/1 सवि भण्णति (भण्ण) व 3/2 सक सव्वण्हू (सव्वण्हु)
1/2 वि । 139 दन्व = द्रव्य । सल्लक्खणिय = सत्लक्षणयुक्त । उत्पादन्वयघुवत्तसजुत्त =
उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य से सहित । गुरणपज्जयासय = गुण और पर्याय का आश्रय । वा= और । ज= जो । त= वह । भण्णति = कहते है । सवण्हू = सर्वज्ञ ।
140 सत्ता (सत्ता) 1/1 सव्वपयत्या [[(सव)-(पयत्था) 1/1] वि]
सविस्सरूवा (सविस्सरूवा) 1/1 वि अणतपज्जाया [(अणत) वि(पज्जाया) 1/1 वि] भगप्पादधुवत्ता [(भग)+ (उप्पाद)+ (धुवत्ता)] [[(भग)-(उप्पाद)-(घुवत्ता)] वि] सप्पडिवक्खा (सप्पडिवक्खा) 1/1
वि हवदि (हव) व 3/1 अक एक्का (एक्का) 1/1 वि। 140 सत्ता = सत्ता । सन्वपयत्था = सर्वपदार्थमय । सविस्सरूवा = अनेक प्रकार
सहित । अणतपज्जाया = अनन्त पर्यायवाली । भगुप्पादधुवत्ता= उत्पाद,
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द्रव्य विचार

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