Book Title: Aacharya Kundakunda Dravyavichar
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 116
________________ 147 सो (त) 1/1 सवि चैव (अ) = ही जादि (जा) व 3/1 अक मरणं (मरण) 2/1 जादि (जा) व 3/1 सक ण (अ) = न गट्ठो (णट्ठ) भूक 1/अनि चेव (अ) = ही उप्पण्णी (उप्पण्ण) भूक 1/1 अनि उप्पण्णो (उप्पण्ण) भूक 1/1 अनि य (अ) = और विरणछो (विणट्ठ) भूक 1/1 अनि देवो (देव) 1/1 मणुसो (मणुस) 1/1 ति (अ) = इस प्रकार पज्जानो (पज्जाय) 1/1। 147 सो वह । चेव ही । जादि = उत्पन्न होता है । मरण = मरण को। जादि प्राप्त होता है । = न । रगट्ठी नष्ट हुआ । एन । चेव % ही । उप्पण्णो = उत्पन्न हुआ । उप्पण्णो = उत्पन्न हुई । य = और । विरठ्ठो नष्ट हुई। देवो% देव । मणुसो मनुष्य । ति= इस प्रकार । पज्जानो पर्याय । 148 अत्थो (अत्थ) 1/1 खलु (अ) = पादपूरक दव्वमनो (दव्वमन) 111 दवाणि (दव्व) 1/2 गुणप्पगाणि [(गुण)+ (अप्पगाणि)] [(गुण)(अप्पग) 1/2 वि] भरिणदाणि (भण) भूक 1/2 तेहिं (त) 3/2 सवि पुणो (अ) = और पज्जाया (पज्जाय) 1/2 पज्जयमूढा [(पज्जय) (मूढ) 1/2 वि] हि (अ) = ही परसमया (परसमय) 1/2 वि । 148 अत्यो = पदार्थ । दन्वमन्नो = द्रव्यमय । दन्वाणि = द्रव्य । गुणप्पगाणि = गुणस्वरूपवाले । भरिणदाणि = कहे गये । तेहि = उन से । पुणो = और । पज्जाया = पर्याय । पज्जयमूढा पर्यायो मे मोहित । हि= ही। परसमया = मूच्छित । 149 जे (ज) 1/2 सवि पज्जयेसु (पज्जय) 7/2 गिरदा (णिरद) भूकृ 1/2 अनि जीवा (जीव) 1/2 परसमयिग (परसमयिग) मूलशब्द 1/2 वि त्ति (अ) = शब्दस्वरूपद्योतक गिद्दिट्ठा (णिद्दिट्ठ) भूकृ 1/2 अनि प्रादसहावम्मि [(आद)-(सहाव)7/1] ठिदा (ठिद) भूकृ 1/2 अनि ते (त) 1/2 सवि सगसमया [(सग) वि- (समय) 1/2] मुणेदव्या (मुण) विधि कृ 1/2 । 149 जेजो। पज्जयेसु-पर्यायो मे । णिरदा = लीन । जीवा - जीव । परसमयिग = मूच्छित । णिहिट्ठा - कहे गये । प्रादसहावम्मि = प्रात्म स्वभाव मे । विदा ठहरे हुए । ते वे। समगमया = जाग्रत । मुणेदव्वा समझे जाने चाहिए। 100 प्राचार्य कुन्दकुन्द

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