Book Title: Aacharya Kundakunda Dravyavichar
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Jain Vidya Samsthan
View full book text
________________
144 भावस्स (भाव) 6/1 त्यि = नही णासो (णास) 1/1 प्रभावस्स
(अभाव) 611 चेव (अ) = पादपूरक उप्पादो (उप्पाद) 1/1 गुणपज्जयेसु [(गुण)-(पज्जय)1 7/2] भावा (भाव) 1/2 उप्पादवए [(उप्पाद)(वन) 2/2] पकुवति (पकुव) व 3/2 सक । 1 कभी-कभी तृतीया के स्थान पर सप्तमी का प्रयोग पाया जाता
है (हे प्रा व्या 3-135)।
144 भावस्स- सत् का। रात्यि = नही । णासो नाश । एस्थि नही ।
प्रभावस्स = असत् का । उप्पादो- उत्पाद । गुणयज्जयेसु = गुण-पर्यायो मे → गुण-पर्यायो द्वारा । भावा = द्रव्य । उप्पादवए = उत्पाद-व्यय । पकुव्वति = करते है।
145 भावा (भाव) 1/2 जीवादीया [(जीव)+ (अदीया)] [(जीव)
(अदीय)1/2] जीवगुणा [(जीव)-(गुण) 1/2] चेदणा (चेदणा)1/1 य (अ) = और उवयोगो (उवयोग) 1/1 सुरणरणारयतिरिया [(सुर)(णर)-(णारय) वि-(तिरिय) 1/2] जीवस्स (जीव) 6/1 य (अ) =
और पज्जया (पज्जय) 1/2 बहुगा (बहुग) 1/1 वि । 145. भावा = सत् । जीवादीया = जीव आदि । जीवगुणा = जीव के गुण ।
चेदरणा = चेतना। य= और । उवयोगो = ज्ञान । सुरणरणारयतिरिया = , देव, मनुष्य, नारकी और तिर्यञ्च । जीवस्स = जीव की । य = और ।
पज्जया पर्याय । बहुगा=अनेक । 146 मणुसत्तणेण (मणुसत्तण) 3/1 णट्ठो (णट्ठ) भूक 1/1 अनि देही (देहि)
1/1 देवो (देव) 1/1 हवेदि (हव) व 3/1 अक इदरो (इदर) 1/1 वि वा (अ) = अथवा उभयत्त (उभयत्त) मूलशब्द 7/1 वि जीवभावो [(जीव)-(भाव) 1/1] ण (अ) = न णस्सदि (णस्स) व 3/1 अक
जायदे (जा→ जाय) व 3/1 अक अण्णो (अण्ण) 1/1 वि । 146 मणुसत्तणेण = मनुष्यत्व से । णट्ठो = लुप्त हुआ । देही = जीव । देवो =
देव । हवेदि = होता है । इदरो= अन्य कोई पर्यायवाला । वा = अथवा । उभयत्त = दोनो मे । जीवभावो = जीव पदार्थ । =न । णस्सदि% नष्ट होता है । णन । जायदे = उत्पन्न होता है। अण्णो % नया।
99
द्रव्य-विचार

Page Navigation
1 ... 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123