Book Title: Aacharya Kundakunda Dravyavichar
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 111
________________ 132 गमणिमित्त [(गमण) – (णिमित्त) 1/1] धम्म (धम्म) 1/1 अधम्म (अधम्म) 1/1 ठिदि (ठिदि) मूलशब्द 7/1 जीवपोग्गलाण [(जीव) - (पोग्गल) 6/2] च (अ) = और अवगहण (अवगहण) 1/1 प्रायास (मायास) 1/1 जीवादीसव्वदन्वाणं [(जीव) + (आदी)+ (सव्व)+ (दब्वाण)] [(जीव) - (मादी)1- (सम्व) वि - (दन्व) 6/2] । 1 समास मे 'पादि' का 'मादी' किया जा सकता है (हे प्रा व्या 1-67) । 132 गमणिमित्तं = गति मे निमित्त । धम्म = धर्मास्तिकाय । अधम्म = अधर्मास्तिकाय । ठिदि = स्थिति मे । जीवपोग्गलाण = जीवो, पुद्गलो की । चौर । प्रवगहण = ठहरने का स्थान । मायास = आकाश । जीवावीसव्वदव्वाण = जीव आदि सभी द्रव्यो के लिए। 133 सर्वसि (सव्व) 6/2 स जीवाणं (जीव) 6/2 सेसाण (सेस) 6/2 तह य (म) - और इसी प्रकार पुग्गलाण (पुग्गल) 6/2 च (अ) = और ज(ज) 1/1 सवि देदि (दा) व 3/1 सक विवरमखिल [(विवर)+ (मखिल)] विवर (विवर) 2/1 अखिल (अखिल) 2/1 वि त (त) 1/1 सवि लोए (लोप) 7/1 हवदि (हव) व 3/1 अक प्रायास (प्रायास) 1/1 | 133 सम्वेसि = सभी के लिए) । जीवाण = जीवो के लिए। सेसाण = शेष के लिए । तह य = और इसी प्रकार । पुग्गलाण = पुद्गलो के लिए। चमौर । जंजो । देवि = देता है । विवरमखिल = पूरा स्थान । त= वह । लोए = लोक मे । हववि = होता है । प्रायास = प्राकाश । 134 पुग्गलजीवणिबद्धो [(पुग्गल)- (जीव) - (णिबद्ध) भूक 1/1 अनि] धम्माषम्मत्यिकायकालड्ढो [(धम्म) + (प्रघम्मत्यिकाय) + (काल)+ (अड्ढो)] [(धम्म) - (अधम्मत्थिकाय) - (काल) - (अड्ढ)1/1 वि] वट्टदि (वट्ट) व 3/1 अक मायासे (मायास) 7/1 जो (ज) 1/1 सवि लोगो (लोग) 1/1 सो (त) 1/1 सवि सम्वकाले [(सन्व) वि - (काल) 7/1] द (अ) = पादपूरक । 134 पुग्गलजीवणिबढो= पुद्गल और जीवो से जुड़ा हुआ । पम्माधम्मत्यिकाय कालड्ढो= धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, काल से युक्त । वट्टदि = है । मायासे = आकाश मे । जो जो। लोगो = लोक । सो = वह । सम्वकाले = सभी समय मे। 98 द्रव्य-विचार

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