Book Title: Aacharya Kundakunda Dravyavichar
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Jain Vidya Samsthan

View full book text
Previous | Next

Page 109
________________ 127 धम्मत्यिकायमरस [(धम्मत्थिकाय)+ (अरम)] धम्मत्थिकाय (धम्मत्थि फाय) 1/1 अरस (मरस) 1/1 वि अवण्णगघ [(अवण्ण) + (अगध)] अवण्ण (अवण्ण) 11 वि अगध (अगध) 1/1 वि असहमप्फास [(असद्द) + (अप्फास)] असद्द (असद्द) 1/1 वि अप्फास (अप्फास) 1/1 वि लोगोगाद [(लोग) + (ोगाढ)] [लोग - (मोगाढ) 1/1 वि] पुठं (पुट्ठ) भूक 1/1 अनि पिहुलमसखादियपदेस [(पिहुल) + (असखादियपदेस)] पिहुल (पिहुल) 1/1 वि असखादियपदेस (प्रसखादियपदेस) 1/1 वि।। 127 धम्मत्यिकायमरसं = धर्मास्तिकाय, रसरहित । अवण्णगध = वर्णरहित, गधरहित । असद्दमप्फांस - शब्दरहित, स्पर्शरहित । लोगोगाढ = लोक मे व्याप्त । पुळे - छुए हुए । पिहुलमसखादियपदेस = व्याप्त, असरयात प्रदेशवाला। 128 उदयं (उदय) 1/1 नह (म) - जिस प्रकार मच्छाण (मच्छ) 6/2 गमणाणुग्गहयर [(गमण) + (अणुग्गयर)] [(गमण)-(अणुग्गयर) 1/1 वि] हवदि (हव) व 3/1 अक लोए (लोअ) 7/1 तह (अ) = उसी प्रकार जीवपुग्गलाण [(जीव)-(पुग्गल) 6/2] धम्म (धम्म) 1/1 वव्व (दव्व) 1/1 वियाणेहि (वियाण) विधि 2/1 सक। 128 उदय = जल । जह = जिस प्रकार । मच्छाण = मछलियो के । गमणाणुग्गहयर = गमन मे उपकार करनेवाला । हवदि = होता है । लोए = लोक मे। तह- उसी प्रकार । जीवपुग्गलाण = जीव और पुद्गलो के लिए । धम्म-धर्म । दव्व = द्रव्य । वियाणेहि = समझो । 129 जह (प्र) = जिस प्रकार हवदि (हव) व 3/1 अक धम्मदव (धम्मदव्व) 1/1 तह (अ) = उसी प्रकार त (त) 2/1 सवि जाणेह (जाण) विधि 2/2 संक दवमधमक्ख [(दब)+ (अधम)+ (अक्ख)] दव्व (दव्व) 2/1 [(अधम)-(अक्खा)1 21 वि] ठिदिकिरियाजुत्ताण [(ठिदि)(किरिया)-(जुत्त) भूकृ 4/2 अनि] कारणभूद [(कारण)-(भूद) भूक 1/l अनि तु (प्र) = किन्तु पुढवी (पुढवी) 1/1 व (अ) = की तरह । 1 समास के अन्त में अर्थ होता है 'नामवाला'। 129 जह (अ) = जिस प्रकार । हवदि = होता है । धम्मदव्व धर्मास्तिकाय द्रव्य । तह - उसी प्रकार | त उस को । जाणेह= जानो । दवमधमपखं 93 द्रव्य-विचार

Loading...

Page Navigation
1 ... 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123