Book Title: Aacharya Kundakunda Dravyavichar
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Jain Vidya Samsthan
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( ( प्रत ) - ( अत) 1 / 1 वि] णेव ( अ ) = नही इदिए - (इदिन ) 7/1 गेज्झ (गेज्झ ) विधि कृ 1 / 1 अनि श्रविभागी ( प्रविभागि) 1 / 1 वि ज (ज) 1/1 सवि दव्व ( दव्व) 1 / 1 परमाणू (परमाणु) 1 / 1 त (त) 1 / 1 सवि वियाणाहि (वियाण) विधि 2 / 1 सक |
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कभी कभी तृतीया के स्थान पर सप्तमी का प्रयोग पाया जाता है ( हे प्रा च्या 3-135 ) ।
124 प्रत्तादि = स्व, आदि । श्रत्तमज्भ = स्व, मध्य । श्रत्तत = स्व, ग्रन्त । णेव = नही । इदिए = इन्द्रिय मे इन्द्रिय द्वारा । गेज्झ = ग्रहण योग्य | श्रविभागी = भेदरहित । ज= जो । दव्व = द्रव्य । परमाणू = परमाणु | त = वह | वियागाहि = जानो ।
125 एयरसरूवगध [ ( एय) वि - (रस) – (रुव) ( गव) 1/1] दो (दो) 1 / 1 विकास ( फास) 1 / 1 त ( त) 1 / 1 सवि हवे (हव) व 3 / 1 अक सहावगुण (सहावगुण) 1 / 1 वि विहावगुरणमिदि [ ( विहावगुण) + ( इदि ) ] विहावगुण ( विहावगुण) 1 / 1 वि इदि ( अ ) = शब्दस्वरूप द्योतक भरिणद ( भण) भूकृ 1 / 1 जिणसमये [ ( जिण) - (समय) 7/1] सव्वपयडत्तं [ ( सव्व) वि - ( पयडत्त ) 1 / 1 ] |
-
=
125 एपरसरूवगघ = एक रस, रूप, गध । दो = दो । फास = स्पर्शं । त = वह । हवे = होता है । सहावगुण = स्वभाव गुणवाला । विहावगुणमिदि विभावगुणवाला | भरिगद = कहा गया । जिणसमये = जिनशासन मे । सव्वपयडत्त = सबके लिए प्रकटता गुणवाला ।
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126 प्रणनिरावेक्खो [ ( गण ) वि- ( निरावेक्ख ) 1 / 1 ] जो (ज) 1 / 1 सवि परिणामो (परिणाम) 1 / 1 सो (त) 1 / 1 सवि सहावपज्जाश्रो [ ( सहाव ) - (पज्जा ) 1/1] खधसरूवेण [ ( खध ) - ( सरूव ) 3 / 1] पुरणो ( अ ) = और परिणामो (परिणाम) 1 / 1 सो (त) 1 / 1 विहावपज्जाओ [ ( विहाव ) - ( पज्जा ) 1 / 1 ] 1
सवि
126 श्रण्णनिरावेक्खो = दूसरो की अपेक्षारहित परिणमन । जो = जो | परिणामो = परिणमन । सो = वह । सहावपज्जाश्रो = स्वभाव परिणमन । खधसवेण = स्कन्धरूप से | पुणो = ओर | परिणामो = परिणमन | सो = वह । विहावपज्जाश्रो = विभाव-परिणमन ।
आचार्य कुन्दकुन्द

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