Book Title: Aacharya Kundakunda Dravyavichar
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 107
________________ सप्पोजसतेलमादीया [(सप्पी) + (जल) + (तेल) + (प्रादीया)] [(सप्पी)- (जल)-(तेल) 1/1] आदीया (मादीय) 1/2 । 121. भूपध्वदमादीया = भू, पवंत प्रादि । भरिणदा = कहे गये । अइथूलथूलमिवि = प्रति स्थूल स्यूल । बधा= स्कन्ध । थूला= स्थूल । विण्णेया = समझे जाने चाहिए । सप्पोजलतेलमादीया = घी, जल, तेल मादि । 122 घायातवमादीया [(छाया)+ (प्रातव) + (आदीया)] [(छाया) (भातव) 1/1] आदीया (आदीय) 1/2 थूलेदरखधमिवि [(थूल)+ (इदर)+ (खघ) + (इदि)] [(थूल) - (इदर) - (खघ) 1/1] इदि (प्र) = शब्दस्वरूपद्योतक वियारवाहि (वियाण) विधि 2/1 सक सुहम (सुहुम) मूलशब्द 1/2 वि थूलैदि [(थूल)+ (इदि)] थूल (यूल) मूल शब्द 1/2 वि इदि (प्र) शब्दस्वरूप द्योतक भणिया (भण) भूक 1/2 खषा (वघ) 1/2 चतरपखविसया [(चउरक्ख)- (विसय) 1/2] य (म) =ौर। 122 घायातवमादीया = छाया, घूप प्रादि । यूलेवरखपमिवि= स्थूल-सूक्ष्म स्कन्ध । वियाणाहि = जानो । सुहम - सूक्ष्म । थूलेदि= स्थूल । भणिया कहे गये । खधा= स्कन्ध । चउरक्खविसया चार इन्द्रियो के विषय । योर । 123 सुहमा (सुहम) 1/2 वि हवति (हव) व 3/2 अक खधा (खघ) 1/2 पावोग्गा = पाप्रोग्गा = पाउग्गा (पउग्ग) 1/2 वि कम्मवग्गणस्स [(कम्म)- (वग्गण) 6/1 ] पुरषो और तग्विवरीया [ (त)(विवरीय) 1/2 वि] खधा (खघ) 1/2 अहसुहमा [(प्रइ) वि(सुहुम) 1/2 वि] इदि (म) = इस प्रकार परूववि (परूव) व 3/2 सक। 123 सुहमा = सूक्ष्म । हवति = होते है । खपा स्कन्ध । पावोग्गा = पामोग्गा = योग्य । कम्मवग्गणस्स = कर्म वर्गणा के । पुणो मोर । तग्विवरीया - इसके विपरीत । खषा = स्कन्ध । अइसुहमा अति सूक्ष्म । इदि = इस प्रकार | परवेंदि = प्रतिपादन करते हैं । 124 अत्तादि [(अत्त)+ (आदि)] [(अत्त) - (आदि) मूलशब्द 1/1] प्रत्तमझ [(प्रत्त)- (मज्झ) 1/1] प्रत्तत [(अत्त) + (प्रत)] द्रव्य-विचार

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