Book Title: Aacharya Kundakunda Dravyavichar
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 105
________________ (णिद्धत्तण) 2/1 व (अ) = और लुक्खत्तं (लुक्खत्त) 2/1 परिणामावो (परिणाम) 5/1 भरिणद (भण) भूक 1/1 जाव (अ) = तक अणंतत्तमणुहवदि [(अणतत्त)+ (अणुवदि)] अणतत्त (अणतत्त) 1/1 अणुहवदि (अणुहव) व 3/1 सक । 1 समास के अन्त मे 'पादि' का अर्थ होता है 'प्रारम्भ करके' । 116 एगुत्तरमेगादी = एक के बाद मे, एक से प्रारम्भ करके । अणुस्स = परमाणु के । गिद्धत्तण = स्निग्धता । व= और । लुक्खत्त = रूक्षता । परिणामादो% परिणमन के कारण । भरिगद = कही गई । जाव= तक । अणंतत्तम णुहदि = अणंतत्त+अणुहवदि = अनन्तता, ग्रहण करता है । 117. गिद्धा (णिद्ध) भूक 1/2 अनि वा (अ) = अथवा लुक्खा (लुक्ख) 1/2 वि अणुपरिणामा [(अणु) - (परिणाम) 1/2] समा (सम) 1/2 वि व (अ) = पादपूरक विसमा (विसम) 1/2 वि समदो (सम) पचमी अर्थक 'दो' प्रत्यय दुराधिगा [(दु)+ (र) + (अधिगा)] [(दु)(र) -ही- (अधिग) 1/2 वि] जदि (अ) = यदि बज्झन्ति (वज्झन्ति) व कर्म 3/2 सक हि (अ) = निश्चय ही आदिपरिहोणा [(आदि)1- (परिहीण) भूक 1/2 अनि] । 1 आदि = प्रथम अश 117 णिद्धा = स्निग्ध । वा अथवा । लुक्खा = रूक्ष । अणुपरिणामा परमाणुओ का परिणमन । समा= सम । विसमा = विषम । समदो= प्रत्येक सस्या से (इसी प्रकार) । दुराधिगा = दो ही अधिक । जदि (अ) = यदि । बज्झति = वाघे जाते हैं । हि = निश्चय ही । प्राविपरिहीणा = प्रथम अशरहित । 118 गिद्धत्तणेण! (णिद्धत्तण) 3/1 दुगुणो [ (दु) वि- (गुण) 1/1 ] चदुगुणणिद्वेण [ (चदु) वि - (गुण)- (गिद्ध) 3/1] बघमणुहदि [(वध)+ (अणुहवदि)] वध (वघ) 2/1 अणुहवदि (अणुहव) व 3/1 मक लुक्खेण (लुक्ख) 3/1 वा (अ) = और तिगुरिणदो [(ति) - (गुणि) पचमी अर्थक दो प्रत्यय] अणु (अणु) मूल शब्द 1/1 बज्झदि (वज्झदि) व कर्म 3/1 सक अनि पचगुणतो [(पच) वि- (गुण)(जुत्त) भूक 1/1 अनि] । 1 कभी कभी सप्तमी के स्थान पर तृतीया का प्रयोग पाया जाता है (हे प्रा व्या 3-137)। 89 द्रव्य-विचार

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