Book Title: Aacharya Kundakunda Dravyavichar
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Jain Vidya Samsthan

View full book text
Previous | Next

Page 104
________________ (त) 1/1 सवि सव्वं (सन्च) 1/1 वि पुग्गलं (पुग्गल) 1/1 जाणे । (जाण) विधि 2/1 सक । 113 उवभोजमिदिएहि = इन्द्रियो द्वारा भोगे जाने योग्य विषय । य = तथा । इदिय = इन्द्रिया। काया = शरीर । मणो मन । य% व । कम्मारिण= कर्म । ज= जो । हवदि है । मुत्तमपण = अन्य भौतिक । त= वह । सव्व = सभी । पुग्गल = पुद्गल । जाणे = समझो। 114 देहो (देह) 1/1 य (प्र) = और मणो (मण) 1/1 वाणी (वाणी) 1/1 पोग्गलदव्वप्पत्ति [(पोग्गल) + (दव) + (अप्पग) + (इति)] [(पोग्गल)-(दव)-(अप्पग) मूल शब्द 1/2] इति (अ) = पादपूरक गिद्दिदगा (णिहिट) भूक 1/2 अनि पोग्गलदम्वपि [(पोग्गल)+ (दव्व) + (अपि)] [(पोग्गल)-(दव्व) 1/1] अपि = भी पुणो और पिंडो (पिंड) 1/1 परमाणुदव्वाण [(परमाणु)-(दव्व) 6/2] । 1 'अप्पग' समास के अन्त मे अर्थ होता है 'बना हुआ । 114 देहो = देह । य =और । मणो मन । वाणी वाणी । पोग्गलदध्वप्पत्ति = पुद्गल द्रव्य से बने हुए । रिणविट्ठा = कहे गये । पोग्गलदव्वपि % पुद्गल द्रव्य भी । पुणो और । पिंडोपिण्ड । परमाणुदव्वाणं = परमाणु द्रव्यो का। 115 अपदेसो (अपदेस) 1/1 परमाणू (परमाणु) 1/1 पदेसमेत्तो (पदेसमेत) 1/1 वि य (प्र) = तथा सयमसद्दो [(सय) + (असद्दो)] सय (अ) = स्वय असद्दो (असद्द) 1/1 वि जो (ज) 1/1 सवि गिद्धो (णिद्ध) भूक 1/1 अनि वा (प्र) = अथवा लुपखो (लुक्ख) 1/1 वि वा (अ) = और दुपदेसादित्तमणुहवदि [(दु) + (पदेस) + (प्रादित्त) + (अणुहवदि)] [(दु) - (पदेस) - (प्रादित्त) 2/1] अणुहदि (अणुहव) व 3/1 सक। 115 अपदेसो प्रदेशरहित । परमाण = परमाणु । पदेसमेत्तो = एक प्रदेश जितना । य= तथा । सयमसद्दी = सय+असद्दो = स्वय, शब्दरहित । जो जो । गिद्धो- स्निग्ध । वा=अथवा । लुक्खोस्खा । वा= और । दुपदेसादित्तमणुहवदि = दो प्रदेश प्रादिपने को ग्रहण करता है । 116 एगुत्तरमेगादी [(एगुत्तर) + (एग) + (आदी)] एगुत्तर (अ) = एक के वाद मे [(एग) - (आदि)1 1/1] अणुस्स (अणु) 6/1 णितणं 88 प्राचार्य कुन्दकुन्द

Loading...

Page Navigation
1 ... 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123