Book Title: Aacharya Kundakunda Dravyavichar
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 102
________________ 108 ठाणणिसेन्जविहारा[(ठाण) - (णिसेज्ज)1 - (विहार) 1/2] धम्मवदेतो [(धम्म) + (उवदेसो)] [(धम्म) - (उवदेम) 1/1] प (प) = तथा रिणयदयो (णियद) पचमी-अर्थक प्रो-यो प्रत्यय तेसि (त) 6/2 स भरहतारण (अरहत) 6/2 काले (काल) 7/1 मायाचारोग्य [(माया)+ (चारो)+ (ब्व)] [(माया) - (चार) 1/1] व्व (अ) = की तरह इत्थीर्ण (इत्थि) 6/21 1 यहा 'णिसेज्जा' का 'णिसेज्ज' हुमा है । समास मे दीर्घ का ह्रस्व किया जा सकता है (हे प्रा व्या 1-67) । 2 कभी कभी षष्ठी का प्रयोग सप्तमी के स्थान पर पाया जाता है (हे प्रा व्या 3-134)। 108 ठाणरिणसेज्जविहारा खडे रहना, बैठना, गमन करना । धम्मबदेसो धर्म का उपदेश देना । य = तथा । णियदयो निश्चित रूप से । तेसि = उन के । अरहंताण-प्ररहतो के । काले % समय मे । मायाचारोव्य% मातामो का पाचरण, जैसे कि । इत्यीणं- स्त्रियो का→स्त्रियो मे । 109 सन्वेसि (सव्व) 6/2 सवि खघाण (खघ) 6/2 जो (ज) 1/1 सवितो (अत) 1/1 वि त (त) 2/1 सवि वियारण (वियाण) विधि 2/1 सक परमाणू (परमाणु) 1/1 सो (त) 1/1 सवि सस्सदो (सस्सद) 1/1 वि असद्दी (असद्द) 1/1 वि एषको (एक्क) 1/1 वि अविभागि (मविमागि) 1/1 वि मुत्तिभवो [(मुत्ति)- (भव) 1/1] ।। 109 सन्वेसि = समस्त । खंघाण = पुद्गल पिण्डो का । जो जो । प्रतो अन्तिम प्रश। त= उसको । वियाण = समझो । परमाणु = परमाणु । सो वह । सस्सदो= शाश्वत । प्रसहो = शब्दरहित । एक्को एक । प्रविभागी= अविभाज्य । मुत्तिभवो = भौतिक वस्तुओ का मूल । 110. प्रादेशमत्तमुत्तो [(मादेश)-(मत्त)-(मुत्त) 1/1 वि] पादुमदुरकस्स [(धादु)-(चदुक्क) 6/1] कारण (कारण) 1/1 जो (ज) 1/1 सवि दु (म) = पादपूरक सो (त) 1/1 सवि गेमो (णेम) विधिक 1/1 पनि परमाणू (परमाणु) 1/1 परिणामगणो [(परिणाम)-(गुण) 1/1] सयमसदो [(सय)+ (असद्दो)] सय (प्र) स्वय प्रसहो (मसद्द) 1/1 वि। 86 प्राचार्य कुन्दकुन्द

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