Book Title: Aacharya Kundakunda Dravyavichar
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 101
________________ 105 तह = तथा । सो= वह । लसहावो स्वय ही स्वभाव अनुभव कर लिया गया । सव्वण्हू = सर्वज्ञ । सन्वलोगपदिमहिदो = लोकाधिपति इन्द्र द्वारा पूजा गया । भूदो = हुआ । सयमेवादा = सय+ एव+प्रादा = स्वय, ही, व्यक्ति । हवदि = होता है । सयभुत्ति = स्वयभू, इस प्रकार । णिद्दिद्योकहा गया। 106 उवप्रोगविसुद्धो [(उवप्रोग) - (विसुद्ध) 1/1 वि] जो (ज) 1/1 सवि विगदावरणतरायमोहरो [(विगद) + (आवरण) + (अतराय) + (मोह) + (रो)] [(विगद) भूकृ अनि - (आवरण) - (अतराय)(मोह) - (रअ) 1/1] भूदो (भूद) भूकृ 1/1 अनि सयमेवादा[(सय)+ (एव) + (आदा)] सय (अ) = स्वय एव (अ) = ही प्रादा (पाद) 1/1 जादि (जा) व 3/1 सक पर (अ) = पूर्णरूप से णेयभूवाणं [(णेय)(भूद)16/2] । 1 कभी कभी द्वितीया के स्थान पर षष्ठी का प्रयोग पाया जाता है (हे प्रा व्या 3-134)। 106 उवोगविसुद्धो= उपयोग मे, शुद्ध । जो जो । विगदावरणतराय मोहरो विगद+आवरण+अतराय+मोह+रो नष्ट कर दी गई, आवरण, बाधा, मोहरूपी धूल । भूदो= हुआ। सयमेवादा = सय+एव+ प्रादा = स्वय, ही, व्यक्ति । जादि = जान लेता है । पर = पूर्णरूप से । यभूदाण = ज्ञेय पदाथो का → ज्ञेय पदार्थों को । 107 सुविदिदपवत्थसुत्तो [(सु)म= भली प्रकार से - (विदिद) भूक भनि - (पयत्थ) - (सुत्त) 1/1] सजमतवसजुदो [ (सजम) - (तव)(सजुद) 1/1 वि] विगदरागो [(विगद)- (राग) 1/1] समणो (समण) 1/1 समसहदुक्खो [ (सम) वि- (सुह)- (दुक्ख) 1/1] भणिदो (भण) भूक 1/1 सुद्धोवनोगोत्ति [(सुद्ध)+ (उवनोगो) + (इति)] [(सुद्ध) वि - (उवप्रोग) 1/1] इति (अ) = समाप्तिसूचक । 107 सुविदिदपवत्थसुत्तो = भली प्रकार से जान लिए गए, तत्त्व, सूत्र । सजमतवसजुदो = सयम और तप से सयुक्त । विगदरागो= राग समाप्त कर दिया गया। समणो श्रमण । समसुहदुक्खो = सुख और दु ख समान । भणिदो = कहा गया । सुखोवनोगोत्ति = शुद्धोपयोगवाला। 85 द्रव्य-विचार

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