Book Title: Aacharya Kundakunda Dravyavichar
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 100
________________ 103 धम्मेण (धम्म) 3/1 परिणदप्पा [(परिणद) + (अप्पा)] [(परिणद) भूक अनि - (अप्प) 1/1] अप्पा (अप्प) 1/1 जदि (म) = यदि सुद्धसपयोगजुदो [(सुद्ध) वि- (सपयोग) - (जुद) भूक 1/I अनि] पावदि (पाव) व 3/1 सक णिव्वारणमुहं [(णिव्वाण)- (सुह) 2/1] सुहोवजुत्तो [(सुह) + (उवजुत्तो)] [(सुह) - (उवजुत) भूक 1/1अनि] व (अ) = तथा सग्गसुह [(सग्ग) - (सुह) 2/1] । 1 कमी कभी सप्तमी के स्थान पर तृतीया का प्रयोग पाया जाता है। (हे प्रा व्या 3-137)। 103 धम्मेण = धर्म के रूप मे । परिणदप्पा परिणत+अप्पा रूपान्तरित, व्यक्ति । अप्पा व्यक्ति । जदि = यदि । सुद्धसपयोगज़दो= शुद्ध, क्रियानो से, युक्त । पावदि = प्राप्त करता है। णिवारणसुह = परम शान्तिरूपी सुख को । सुहोवजुत्तो सुह+ उवजुत्तो = शुभ क्रियानो से, युक्त । व= तथा । सग्गसुह = स्वर्ग, सुख को । 104 चारित्त (चारित्त) 1/1 खलु (अ) = निस्सदेह धम्मो (धम्म) 1/1 धम्मो (धम्म) 1/1 जो (ज)1/1 सवि सो (त) 1/1 सवि समोति [(समो)+ (इति)] समो (सम) 1/1 इति (अ) = निश्चय ही णिद्दिट्ठो (णिद्दिट्ठ) भूकृ 1/1 अनि मोहक्खोहविहीणो [(मोह) - (क्खोह) - (विहीण) 1/1 वि] परिणामो (परिणाम) 1/1 अप्पणो (अप्पण) 6/1 हु (अ) = ही समो (सम) 1/11 104 चारित्त = चारित्र। खलु - निस्सदेह । धम्मो धर्म । धम्मो = धर्म । जो जो । सो वह । समोत्ति = समो+इति = समता, निश्चय ही। णिद्दिद्यो = कहा गया । मोहक्खोहविहीणो= मोह, क्षोभ से रहित । परिणामो= माव । अप्पणो = आत्मा का । हु%Dही । समो= समता । 105 तह (अ) = तथा सो (त) 1/1 सवि लद्धसहावो [(लद्ध) भूकृ अनि - (सहाव) 1/1] सन्वण्हू (सव्वण्ह) 1/1 वि सम्वलोगपदिमहिदो [(सव) - (लोगपदि) - (मह+महिद) भूक 1/1] भूदो (भूद) भूक 1/1 सयमेवादा [(सय)+ (एव)+ (पादा)] सय = स्वय एव (म) - हो पादा (आद) 1/1 हवदि (हव) व 3/1 अक सयभत्ति [(सयभू) + (इति)] सयभु (सयभू) 1/1 इति (अ) = इस प्रकार णिहिलो (णिहिट्ठ) भूकृ 1/1 अनि । 84 माचार्य कुन्दकुन्द

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