Book Title: Aacharya Kundakunda Dravyavichar
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 106
________________ 118 खितणेण = स्निग्धता से → स्निग्धता मे । दुगुणी = दो अंश । चदुग पणिवेण = चार अश स्निग्य के साथ । बंघमणुहवदि = बघ अनुभव करता है । लुक्लेण = रूक्षता से, रूक्षता मे । वा और । तिगणिदो तीन अशयुक्त से । अणु = परमाणु । बज्झदि = बाधा जाता है । पंचगुणजुत्तोपांच अशयुक्त। 119 दुपदेसादि [(दु) वि+ (पदेस) + (आदि)] [(दु) वि - (पदेस) - (आदि) मूल शब्द 1/1] खधा (खघ) 1/2 सुहमा (सुहम) 1/1 वि वा (अ) = तथा बादरा (बादर) 1/2 वि ससठाणा [(स) वि - (सठाण) 1/2] पुढविजलतेउवाऊ [(पुढवि)- (जल) - (तेउ) - (वाउ) 1/1] सगपरिणामेहि [(सग) वि- (परिणाम) 3/2] जायते (जा) व 3/2 सक। दुपदेसादि = दो प्रदेश से प्रारम्भ करके । खधा= स्कन्ध । सुहमा सूक्ष्म । वा तथा । बादरा= स्थूल । ससंठाणा = आकारसहित । पुढविजलतेउवाऊ = पृथिवी, जल, अग्नि, वायु । सगपरिणामेहि = स्वकीय परिणमन के द्वारा । जायते = उत्पन्न होते हैं । 119 120 अइथूलथूल [(अइ) - (थूल) - (थूल) मूल शब्द 1/1 वि थूल (थूल) 1/1 वि थूलसुहम [(थूल) वि- (सुहुम) 1/l वि] सुहुमयूल [(सुहुम) - (थूल) 1/1 वि ] च (अ) = और सुहुम (सुहुम) 1/1 वि अइसुहम [(इ) वि - (सुहुम) 1/1 वि] इदि (प्र) = इस प्रकार धरादिय [(घरा)+ (प्रादिय)] [(घरा) - (प्रादिय) 1/1] होदि (हो) व 3/1 अक छन्भेय [(छ) वि - (ब्मेय) 1/1] | 120 अइथूलथूल = प्रति स्थूल स्थूल । थूल = स्थूल । थूलसुहुम = स्थूल-सूक्ष्म । सुहमथूल = सूक्ष्म-स्थूल। च% और । सुहुम = सूक्ष्म । महसुहुम = प्रति सूक्ष्म । इदि = इस प्रकार । धरादिय पृथिवी से आरम करके । होदि%D होता है । छन्मेय = छह भेद । 121 भूपधदमादीया [(भू) + (पव्वद)+ (प्रादीया)] [(भू) - (पम्वद) 1/1] आदीया (आदीय) 1/2 भरिणदा (भण) भूकृ 1/2 अइयूल)लमिदि [(अइ) + (थूल) + (थूल)+ (इदि)] [(अइ) वि- (थूल) - (थूल) 1/1] इदि = शब्दस्वरूपद्योतक खधा (खध) 1/2 थूला (थूल) 1/2 वि इदि = शब्दस्वरूपद्योतक विण्णेया (विण्णेय) विधिक 1/2 अनि 90 आचार्य कुन्दकुन्द

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