Book Title: Aacharya Kundakunda Dravyavichar
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 84
________________ य = समझने उत्पन्न हुई। तम्हा = इमलिए । दुही । तवह । योग्य । 60 अस्थि (अ) = है अमुत्त (अमुत्त) 1/1 वि मुत्त (मुत्त)1/1 वि अदिदिय (अदिदिय) 1/1 वि इदिय (इदिय) 1/1 वि च (अ) = तथा प्रत्येसु (अत्थ) 7/2 णाण (णाण) 1/1 च (अ) = और तधा (अ) = इसी तरह सोक्ख (सोक्ख) 1/1 ज (ज) 1/1 सवि तेसु (त) 7/2 स पर (पर) 1/1 वि च (अ) = इसलिए त (त) 1/1 मवि णेय (णेय) विधि कृ 1/1 अनि । 60 अत्यि(अ) = है। अमुत्त = मूर्छारहित । मुत्त = मू युक्त। अदिदिय = अतीन्द्रिय । इदिय = इन्द्रिय-ज्ञान । च = तथा । प्रत्येसु = पदार्थों के विषय मे । णाण = ज्ञान । च तथा और इसी तरह । सोक्सं = मुख । ज= जो। तेसु= उनमे। पर = श्रेष्ठ । च = इसलिए । त= वह । य = समझने योग्य। 61 ज (ज) 1/1 सवि केवलत्ति [(केवल) + (इति)] केवल (केवल) मूल शब्द 1/1 वि इति (अ) स्पष्टीकरण णाण (णाण) 1/1 त (त) 1/1 सवि सोक्ख (सोक्ख) 1/1 परिणम (परिणम) 2/1 च = निस्सन्देह सो (त) 1/1 सवि चेव = ही खेदो (खेद) 1/1 तस्स (त) 6/1 स ण (अ) = नही भणिदो (भण) भूकृ 1/1 जम्हा (अ) = चूकि धादी (घादि) 1/2 वि खय (खय) 2/1 जादा (जा) भूकृ 1/2 ।। 1 द्वितीया का प्रयोग प्रथमा अर्थ मे हुआ है । (हेम प्राकृत व्याकरण, वृत्ति 3-137) तथा परिणाम का परिणम किया गया है (हेम प्रा व्या. वृत्ति 1-67) 61 ज= जो । केवल = केवल । णाण = ज्ञान । त= वह । सोक्ख = सुख । परिणम = रूपान्तरण । च = निस्सदेह । सो वह । वही । खेदोखेद । तस्स = उसके । ण = नही । भणिदो- कहा गया । जम्हा= चूकि । घादी = घातिया कर्म । खय = क्षय को । जादा प्राप्त हुए हैं । -62 जाद (जाद) भूकृ 1/1 अनि सय (प) = आप से प्राप समत्तं (अ) = पूर्ण णाणमणतत्थवित्थिद [(णाण) + (अणत)+ (अत्थ) + (वित्थिद)] णाण (णाण) 1/1 [(अणत) वि - (अत्थ) - (वित्थिद) 1/1 वि] विमल (विमल) 1/1 वि रहिद (रहिद) 1/1 वि तु (म) = और 60 प्राचार्य कुन्दकुन्द

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