Book Title: Aacharya Kundakunda Dravyavichar
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 92
________________ रूप । ण = 81 जदि = यदि | सौ = वह । सुहो = शुभ रूप । व = श्रथवा । श्रसुहो = श्रशुभ = नही । हवदि = होता है → होवे । श्रादा = श्रात्मा । सय = स्वय । सहावेण = अपने भाव से । ससारोवि = ससार ही ण =न । विज्जदि = होता है → होवे । सव्र्व्वेसि = किसी भी । जीवकायाण । जीव के । 82 देवदजविगुरुपूजासु ( ( देवद ) 2 - ( जदि ) - (गुरु) - (पूजा) 7/2] चेव (अ) = तथा दाणम्मि (दाण) 7 / 1 वा (प्र) = तथा सुसीलेसु (सुसील ) 7/2 उववासादिसु [ ( उववास ) + ( श्रादिसु ) ] [ ( उववास ) - ( श्रादि ) 7/2 अनि ] रत्ती ( रत्त) भूकृ 1 / 1 अनि सुहोवोगप्पगो [ ( सुह) + ( उवओोग ) + (अप्पगो ) ] [ ( सुह ) - (उद्योग) - ( अप्पग ) 1 / 1 वि] अप्पा ( अप्प ) 1/1 1 1 देवदा' के स्थान पर 'देवद' हुआ है, समास मे दीर्घ का ह्रस्व हो सकता है । (हे प्रात्र्या 1 - 67 ) 82 देवदजदिगुरुपूजासु = देव, साधु, गुरु की भक्ति मे । चेव = तथा । दाणम्मि = दान मे | वा = तथा । सुसीलेसु = शीलो मे । उववासादिसु = उपवास आदि मे । रत्तो = सलग्न । 'सुहोवोगप्पगो = शुभोपयोगवाला । अप्पा = श्रात्मा 1 1 / 1 श्रसुहो == 83 सुहपरिणामो [ ( सुह) वि - (परिणाम) 1 / 1] पुण्ण ( पुण्ण) ( सुह ) 1 / 1 विपावति [ (पाव) + (इति) ] पाव (पाव) 1 / 1 इति शब्दस्वरूपद्योतक हवदि (हव) व 3 / 1 श्रक जीवस्स (जीव ) 6 / 1 दोन्ह (दो) 6/2 वि पोग्गलमेत्तो । [ ( पोग्गल ) - ( मेत्त) 1 / 1] भावो (भाव) 1 / 1 कम्मत्तण (कम्मतण ) 2 / 1 पत्तो ( पत्त ) भूकृ 1 / 1 श्रनि । 1 पष्ठी का प्रयोग तृतीया के स्थान 3-134) I पर हुआ है ( हे प्रा व्या 83 सुपरिणामो = शुभ परिणाम । पुण्ण = पुण्य असुहो = प्रशुभ | पाव = पाप । हवदि = होता है। जीवस्स = जीव का । दोण्ह = दोनो कारणो से । पोग्गलमेत्तो = पुद्गल की राशि । भावो = भाव ने । कम्मत्तण = = कर्मत्व को । पत्तो = प्राप्त किया । 1 / 1 वि 84 रागो (राग) 1 / 1 जस्स ( ज ) 6 / 1 स पसत्यो ( पसत्य ) प्रणुकपाससिदो [(श्रणुकपा) - ( ससिद) भूकृ 1 / 1 अनि ] य (अ) = तथा परिणामो (परिणाम) 1 / 1 चित्तम्हि (चित्त) 7 / 1 णत्थि ( अ ) = नही है ग्राचार्य कुन्दकुन्द 76

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