Book Title: Aacharya Kundakunda Dravyavichar
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Jain Vidya Samsthan
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87 कोपो (कोच) 1/1 व (अ) = या जदा (अ) = जिस समय माणो
(माण) 1/1 माया (माया) 1/1 लोभी (लोम) 1/1 व (प्र) = या चित्तमासेज्ज (चित्त)+(प्रासेज्ज)] चित्त (चित्त) 2/1 आसेज्ज (प्रास) व 3/1 अक जीवस्स (जीव) 6/1 कुणदि (कुण) व 3/1 सक खोह (खोह) 2/1 कलुसो (कलुस) 1/1 त्ति (अ) = शब्द स्वरूपद्योतक य (अ) = निस्सन्देह त (अ) = उस समय बुधा (बुध) 1/2 वि वेंति (बू) व 3/2 सक । 1 सप्तमी के स्थान पर द्वितीया का प्रयोग किया गया है। (हे प्रा
व्या 3-137)। 87 कोधो कोध । व= या । जदा = जिस समय । माणो = मान । माया 3
माया । लोभो = लोभ । व= या । चित्तमासेज्ज = चित्त मे, घटित होता है। जीवस्स = जीव के । कुणदि = उत्पन्न करता है। खोह % व्याकुलता (को) । कलुसो= मलिनता। य= निस्सन्देह । त= उस समय । बुधा%
ज्ञानी । ति = कहते हैं। 88 चरिया (चरिया) 1/1 पमादबहुला [(पमाद)-(बहुल- बहुला)1/1]
कालुस्स (कालुस्स) 1/1 लोलदा (लोल→ लोलदा) 1/1 य (अ) = और विसयेसु (विमय) 7/2 परपरितावपवादो [(पर)+ (परिताव)+ (अपवाद)] [(पर)वि - (परिताव) - (अपवाद) 1/1] पावस्स (पाव) 6/1 य(अ) = व पासव (आसव) 2/1 कुणदि (कुण) व 3/2 सक। चरिया = आचरण । पमादबहुला= लापरवाहीपूर्वक । कालुस्सं = मलिनता। लोलदा = लालसा । य= और । विसयेसु= विपयो मे । परपरितावप वादो परपरिताव+अपवादो= दूसरो को पीडा देना, कलक लगाना । पावस्स = पाप के । य=व । पासव = पाने को । कुणदि = प्रोत्साहित करता है।
89 सण्णानो (सण्णा) 1/2 य (अ) = और तिलेस्सा [(ति) - (लेस्सा)
1/1] इंदियवसदा = [(इदिय) - (वस→ वसदा) 1/1] य (अ) = और अत्तरदाणि [(अत्त) - (रुद्द) 1/2] गाण (णाण) 1/1 च (अ) = और दुप्पउत्त (दुप्पउत्त) भूकृ 1/1 अनि मोहो (मोह) 1/1 पावप्पदा
[(पाव) - (प्पद) 1/2] होति (हो) व 3/2 अक। 89 सण्णाओ= सज्ञाए । य% और । तिलेस्सा = तीन लेश्याए । इदियवसदा=
इन्द्रियो की अधीनता । अत्तरदाणि = आर्त और रौद्र ध्यान । णाणं - 78
भाचार्य कुन्दकुन्द

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