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92 विसयकसानोगाढो = विषय-कपायो मे डूबा हुा । दुम्सुदिदुच्चित्तदुठ
गोठिजुदो = दुष्ट मिद्वान्त, दुष्ट बुद्धि, दुष्ट चर्या मे जुड़ा हुआ । उग्गो = क्रूर । उम्मग्गपरो= कुपथ मे लीन । उवनोगो = उपयोग । जस्स = जिम
का । सो वह । असुहो = अशुभ । 93 सुद्ध (सुद्ध) 1/1 वि सुद्धसहाव [(मुद्ध) वि- (सहाव) 1/1] अप्पा
(अप्प) 2/1 अपभ्रण अप्पम्मि (अप्प) 7/1 त (त) 1/1 मवि च (अ)-ही णायव्व (णा) विधि कृ 1/1 इदि (अ) = इस प्रकार जिणवरेहि (जिणवर) 3/2 भरिणय (भण) भूकृ 1/1 ज (ज) 1/1 मवि सेयं (सेय) 1/1 वि तं (त) 2/1 मवि समायरह (नमायर) विधि 2/2 सक । कभी कभी मप्नमी विभक्ति के स्थान पर द्वितीया विभक्ति का प्रयोग पाया
जाता है (हे प्रा व्या, 3-137) । 2 कभी कभी तृतीया विभक्ति के स्थान पर सप्तमी विमक्ति का प्रयोग पाया
जाता है (हे प्रा व्या, 3-135)। सुद्ध = शुद्ध । सुद्धसहाव=शुद्ध स्वभाव । अप्पा=आत्मा को→ आत्मा में। अप्पम्मि = आत्मा मे→ प्रात्मा के द्वारा । तं = वह । च-ही। णायव्वं % अनुभव किया जाना चाहिए । इदि = इस प्रकार | जिणवरेहिं - अरहती द्वारा । भरिणयं = कहा गया। जंजो । सेय= श्रेष्ठ । त= उमको । समायरह = आचरण करो।
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94 उवयोगो (उवयोग) 1/1 जदि (अ) = यदि हि = पादपूरक सुहो = शुभ
पुण्णं (पुण्ण) 2|| वि जीवस्स (जीव) 6/1 संचय (सचय) 2/1 जादि (जा) व 3/1 मक असहो (असुह) 1/1 वि वा (अ) = और तय (अ) = उसी प्रकार पाव (पाव)2/1 तेसिमभावे [(तमि) (अभावे)] तेसिं (त) 6/2 म अभावे (अभाव) 7/1 रण (अ) = नहीं चयमत्यि [(चय) + (अत्यि)] चय' (चय) 2/1 अत्यि (अ) = है । 1 यहा द्वितीया का प्रयोग प्रथमा अर्थ मे किया गया है।
(हे प्रा व्या 3-137) । 94 उवयोगो= उपयोग । जदि = यदि । सहो= शुभ । पुण्णं = पुण्य को ।
जीवस्त= जीव का । सचयं = मत्रह (को) । जादि = करता है । असुहो3 अशुभ । वा=और । तघ = उसी प्रकार । पाव = पाप को । तेसिमभावे 3 उनके, अभाव मे । णनही । चयमत्यि = सग्रह नही होता है।
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प्राचार्य कुन्दकुन्द