Book Title: Aacharya Kundakunda Dravyavichar
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 97
________________ 95 अह (म) = यदि पुण (अ) = किन्तु अप्पा (अप्प) 2/1 अपभ्रंश णिच्छदि [(ण)+ (इच्छदि)] ण (अ) = नही इच्छदि (इच्छ) व 3/1 सक पुण्णाइ (पुण्ण) 2/2 करेदि (कर) व 3/1 सक गिरवसेसाई (णिरवसेस) 2/2 वि तह वि (प्र) = तो भी ण (अ) = नही पावदि (पाव) व 3/1 सक सिद्धि (सिद्धि) 2/1 ससारत्थो (ससारस्थ) 1/1 वि पुणो (प्र) = ही भरिणदो (भण) भूकृ 1/11 95 ग्रह = यदि । पुण= किन्तु । अप्पा= प्रात्मा को। णिच्छदि = ण+ इच्छदि = नही, चाहता है। पुण्णाइ = पुण्यो को । फरेदि = करता है। गिरवसेसाइ = मकल (को) । तह वि = तो भी। ग = नही । पावदि = पाता है । सिद्धि = परम शान्ति । ससारत्यो ससार मे स्थित । पुणो% ही । भरिणदो कहा गया। 96 वदणियमाणि [(वद)- (णियम)2/2] धरता (घर) वकृ 1/2 सोलारिण (सील) 2/2 तहा (अ) = तथा तव (तव) 2/1 च (अ) = और कुवता (कुब) व 1/2 परमट्ठबाहिरा [(परमट्ठ) - (बाहिर) 1/2 वि] जे (ज) 1/2 मवि णिव्वाण (णिव्याण) 2/1 ते (त) 1/2 सवि ण (अ) = नही विदति (विंद) व 3/2 सक । 96 वदरिणयमाणि = व्रत और नियमो को । घरता = धारण करते हुए। सोलाणि = शीलो को । तहा = तथा । तव = तप को । च = और । कुव्वता= पालन करते हुए । परमठ्ठबाहिरा परमार्थ से अपरिचित । जे जो । रिणवाण = परम शान्ति को । तेवे । = नही । विदति = प्राप्त करते हैं । 97 सहपरिणामो [(मुह) वि- (परिणाम) 1/1] पुण्ण (पुण्ण) 1/1 असहो (असुह) 1/1 वि पावत्ति [(पाव) + (इति)] पाव (पाव) मूलशब्द इति = इस प्रकार भणियमण्णेसु [(भणिय) + (अण्णेसु)] भणिय (मण) भूक 1/1 अण्णेमु (अण्ण) 7/2 परिणामो (परिणाम)1/1 एण्णगदो [(ण) + (अण्ण)+ (गदो)] = नही [(अण्ण) वि(गद) भूकृ 1/1 अनि] दुक्खक्खयकारणं [(दुक्ख)- (क्खय) - (कारण) 1/1] समये (समय) 7/11 97 सुहपरिणामो= शुभ, भाव । पुण्ण = पुण्य । असुहो= अशुभ । पावत्ति = पाप, इस प्रकार । भणियमण्णेस = कहा गया, पर के प्रति । परिणामो = द्रव्य-विचार

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