Book Title: Aacharya Kundakunda Dravyavichar
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Jain Vidya Samsthan

View full book text
Previous | Next

Page 93
________________ कलुस (कलुस) 1/1 पुण्ण (पुण्ण) 2/1 जीवस्स (जीव) 6/1 पासवदि (पासव) व 3/1 सक। 84 रागो- राग । जस्स = जिसके । पसत्य - शुभ । अणुकपाससिदो-अनुकपा पर आश्रित । य तथा । चितम्हि = चित्त मे । रात्थि = नही । कलुस % मलिनता । पुण्ण - पुण्य । जीवस्स = जीव के । पासवदि = प्रागमन होता है। 85 प्ररहतसिद्धसाहुसु [(अरहत)-(सिद्ध)-(साहु) 7/2 अनि भत्ती (भत्ति) 1/1 पम्मम्मि (धम्म) 7/1 जा (जा) 1/1 सवि य (अ) = तथा खलु (अ) = वाक्यालकार चेहा (चेट्टा) 1/1 अणुगमण (अणुगमण) 1/1 'पि (अ) = पादपूर्ति गुरुण (गुरु) 6/2 पसत्यरागो [(पसत्य) भूक अनि(राग) 1/1] त्ति (अ) = समाप्तिसूचक बुच्चति (बुच्चति) व कर्म 3/2 सक अनि। 85 मरहतसिद्धसासु- अरहतो, सिद्धो और साधुनो मे । भत्ती = भक्ति । धम्मम्मि = धर्म मे । जा= जो । य-तथा । चेट्ठा-प्रवृत्ति । अणुगमण = अनुसरण । गुरुणं - पूज्य व्यक्तियो का । पसत्थरागो-शुम राग । वृच्चति = कहा जाता है। 86 तिसिद (तिसिद) मत 2/1 अनि बुभुक्खिद (बुभुक्खिद) 2/1 वि वा (प्र) = अथवा दुहिद (दुहिद) 2/1 वि दळूण (दळूण) सकृ जो (ज) 1/1 सवि दु (अ) = भी दुहिदमणो (दुहिद) वि ~ (मण) 1/1] वि} पडिवज्जदि (पडिवज्ज) व 3/1 सक त (त) 2/1 स किवया (किवया) 3/1 अनि (क्रिविन की तरह प्रयुक्त) दयालुता से तस्सेसा [(तस्स)+ (एसा)] तस्स (त) 6/1स एसा (एता) 1/1 सवि होदि (हो) व 3/1 अक अणुकपा (अणुकपा) 1/11 । कभी-कभी सप्तमी के स्थान पर द्वितीया का प्रयोग पाया जाता है। (हे प्रा व्या 3-137) 86 तिसिद = प्यासे । बभक्खिद = भूखे । वा (अ) अथवा । दुहिद %D दुखी। दळूण - देख कर । जो-जो । दु (अ) = भी । हिदमणो - दुखी मनवाला । पडिवज्जदि = व्यवहार करता है । त= उसके प्रति । किवया = दयालुता से । तस्सेसा = उसके, यह । होदि = होती है । अणुकपा = अनुकपा। 17 द्रव्य-विचार

Loading...

Page Navigation
1 ... 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123