Book Title: Aacharya Kundakunda Dravyavichar
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Jain Vidya Samsthan
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माणमो (णाणमन) 1/1 वि अण्णाणमत्रो (अण्णाणमन) 1/1 वि
अण्णाणिस्स (प्रणाणि) 6/1 वि । 75 ज= जो । कुणदि = उत्पन्न करता है। भावमादा= भाव को, प्रात्मा ।
कत्ता = कर्ता । सो वह । होदि = होता है । तस्स = उस (का) । कम्मस्सकर्म का । णाणिस्स% ज्ञानी का । णाणमनो= ज्ञानमय । अण्णाणमनो अजानीमय । प्रणाणिस्स= अज्ञानी का।
76-77 करणयमया (कणयमय) 5/1 वि भावादो (भाव) 5/1 जायते (जाय)
व 3/2 अक फुडलादयो [(कुडल) + (प्रादयो)] [(कुडल)-(आदि) 1/2] भावा (भाव) 1/2 अयमयया (अयमय)5/1 वि स्वार्थिक 'य' प्रत्यय जह (अ) = जैसे दु (अ) = और फडयादी [(कडय)+ (प्रादी)] [(कडय) + (आदि) 1/2)]
अण्णाणमया (अण्णाणमय) 1/2 भावा (भाव) 1/2 प्रणाणिणो (अणाणि) 6/1 बहुविहा (बहुविह) 1/2 वि (अ) = ही जायते (जाय) व 3/2 अक गाणिस्स (णाणि) 6/1 दु (अ) = तथा गाणमया (णाणमय) 1/2 सव्वे (सव्व) 1/2 सवि तहा (अ) = वैसे ही होंति
(हो) व 3/2 अक। 76-77 कणयमया = कनकमय । भावादो= वस्तु से। जायते उत्पन्न होती है। ,
कुंडलादयो = कुण्डल आदि । भावा = वस्तुएँ। अयमयया = लोहमय । भावादो = वस्तु से । जह = जैसे । जायते = उत्पन्न होती है। दु= और । कडयादी = कडे आदि ।
अण्णाणमय = अज्ञानमय । भावा= भाव । प्रणारिणणो= अज्ञानी के । बहुविहा= अनेक प्रकार के । विही । जायते = उत्पन्न होते है । पाणिस्स = ज्ञानी के । दु= तथा । णाणमया = ज्ञानमय । सवे = समी। भावा- भाव । तहा= वैसे ही । होति = होते हैं।
78 णिच्छयणयस्स (णिच्छयणय) 6/1 एव (अ) = इस प्रकार प्रादा (माद)
1/1 अप्पाणमेव [(अप्पाण)+ (एव)] अप्पाण (अप्पाण) 2/1 एव (अ) = ही हि (अ) = पादपूरक करेदि (कर) व 3/1 सक वेदयदि (वेदयदि) व 3/1 सक अनि पुरणो (अ) = तथा त (त) 2/1 सवि चेव (अ) ही जाण (जाण) विधि 2/1 सक अत्ता (अत्त) 1/1 दु (प्र) = ही अत्ताण (अत्ताण) 2/11
प्राचार्य कुन्दकुन्द

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