Book Title: Aacharya Kundakunda Dravyavichar
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Jain Vidya Samsthan
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तो भी वो (वघ) 1/1 अज्झवसाणेण (अज्झवसाण) 3/1 बघो (वघ)
1/1 ति (अ) = अत । 70 वत्यु = वस्तु को । पड़च्च = आश्रय करके । त- वह | पुण = फिर।
अज्झवसाण- विचार । तु-निस्मदेह । होदि = होता है। जीवाणजीवो के । ण% नही । हि = वास्तव में । वत्युदो वस्तु मे। दुतो भी। वधो = वध । अझवसाणेण = विचार से । बधो बघ । ति
71 रत्तो (रत्त) भूक 1/1 अनि वर्षाद (वघ) व 3/1 सक कम्म (कम्म)
1/1 मुच्चादि (मुच्चदि) व कर्म 3/1 मक अनि कम्मेहि (कम्म) 3/2 रागरहिदप्पा [(राग) + (रहिद)+ (अप्पा)] [(राग) - (रहित) वि - (अप्प) 1/1] एसो (एत) 1/1 सवि बधसमासो [(वध)(समास) 1/1] जीवाण (जीव) 6/2 जाण (जाण) विधि 2/1 सक
णिच्छयदो (णिच्छय) पचमी अर्थक 'दो' प्रत्यय । 71 रत्तो = आसक्त। वदि = वाघता है । कम्मं - कर्म को। मुच्चदि
छुटकारा पा जाता है। कम्मेहि = कर्मों से । रागरहिदप्पा-प्रासक्ति से रहित व्यक्ति । एसो- यह । वधसमासो वध का सक्षेप। जीवाण = जीवो के । जाण = समझो । रिपच्छयदो निस्सदेह ।
72 जो (ज) 1/1 सवि इदियादिविजई [(इदिय)+ (आदि) + (विजइ)]
[(इदिय)- (आदि)- (विजइ) 1/1 वि] भवीय (भव) सक उवमोगभप्पग [(उवोग) + (अप्पग)] उवोग (उवयोग) 2/1 अप्पग (अप्प) 2/1 स्वार्थिक 'ग' प्रत्यय झादि (झा) व 3/1 सक कम्मेहि (कम्म) 3/2 सो (त) 1/1 सवि ण (अ) = नही रजदि (रजदि) व कर्म 3/1 सक अनि किह (अ) = कैसे त (त) 2/1 सवि पाणा (पाण)
1/2 अणुचरति (अणुचर) व 3/2 सक । 72 जो-जो । इदिदिविजई = इन्द्रियादि का विजेता। भवीय = होकर ।
उवनोगमप्पग = उवोग+अप्पग = उपयोगमयी, आत्मा को । झावि%D ध्याता है। कम्मेहि = कर्मों के द्वारा । सो वह । ण (अ) = नहीं । रदि = रगा जाता है । किह = कैसे । त= उसको । पाणा = प्राण । अणुचरति == अणुसरण करते है- करेंगे।
प्राचार्य कुन्दकुन्द

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