Book Title: Aacharya Kundakunda Dravyavichar
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 89
________________ 73 परिणमवि (परिणाम) व 3/1 अक यमट्ठ [(णेय) + (अट्ठ) ] णेय (णेय) विधि कृ 2/1 अनि अट्ठ (अट्ठ) 2/1 गादा (णाउ) 1/1 वि जवि = यदि णेव (अ) = कभी नही खाइग (खाइग) 1/1 वि तस्स (त) 6/1 स पाणत्ति [(णाण)+ (इति)] णाण (णाण) 1/1 इति (अ) = इसलिए तं (त) 2/1 सवि जिणिदा (जिणिद) 1/2 खवयत (खवय) वक 2/1 अनि कम्ममेवुत्ता [(कम्म) + (एव) + (उत्ता)] कम्म (कम्म) 2/1 एव (अ) = ही उत्ता' (उत्त) भूक 1/2 अनि । 1 कमी-कभी सप्तमी के स्थान पर द्वितीया का प्रयोग पाया जाता है। (हे प्रा व्या 3-137) प्रे वकृ 2 क्षप् + क्षपय्-- क्षपयत्- क्षपयन्त (2/1)→ खवयत (2/1अनि) 3 यहा 'उत्ता' का प्रयोग कर्तृवाच्य मे हुआ है। 73 परिणमदि = रूपान्तरित होता है । यमठ = णेय -+ अट्ठ = जानने योग्य पदार्थ = ज्ञेय । णादा = ज्ञाता । जदि = यदि । णव = कभी नही । खाइग% कर्मों के क्षय से उत्पन्न । तस्स = उसका । णाण = ज्ञान । इति = इसलिए । त= उसको । जिणिदा = जिनेन्द्रो ने । खवयत = क्षय करता हुआ । कम्ममेवृत्ता = कम्म+एव+ उत्ता = कर्मों को, ही, कहा। 74 ज (ज) 2/1 सवि भाव (भाव) 2/1 सुहमसुह [(सुह) + (असुह)] गुह (सुह) 2/1 वि अमुह (अमुह) 2/1 वि फरेदि (कर) व 3/1 सक प्रादा (पाद) 1/1 स (त) 1/1 सवि तस्स (त) 6/1 स खलु (अ) = निस्सदेह कत्ता (कत्त) 1/1 वि त (त) 1/1 सवि तस्स (त) 6/1 स होदि (हो) व 3/1 अक कम्म (कम्म) 1/1 सो (त) 1/1 सवि तस्स (त) 6/1 स दु (अ) = ही वेदगो (वेदग) 1/1 वि अप्पा (अप्प) 1/11 74 ज=जिस (को) । भाव = भाव को । सुहमसुह = शुभ-अशुभ । करेदि %D करता है । प्रादा= आत्मा । स= वह । तस्स = उसका । खलु = निस्सदेह । कत्ता= कर्ता। त= वह । तस्स = उसका । कम्म = कर्म । सो वह । तस्स उसका । दु=ही । वेदगो = भोक्ता । अप्पा= आत्मा। 75 ज (ज) 2/1 सवि कुणदि (कुण) व 3/1 सक भावमादा [(भाव)+ (प्रादा)] भाव (भाव) 2/1 आदा (पाद) 1/1 फत्ता (कत्तु) 1/1 वि सो (त) 1/1 सवि होदि (हो) व 3/1 अक तस्स (त) 6/1 स कम्मस्म (कम्म) 6/1 णाणिस्स (णाणि) 6/1 वि दु (म) = पादपूर्ति दन्य-विचार

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