Book Title: Aacharya Kundakunda Dravyavichar
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Jain Vidya Samsthan
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% जिस (को) । कुदि = उत्पन्न करता है । भावमादा = भाव को, प्रात्मा । कता = कर्ता । सो= वह । होदि = होता है । तस्स = उस (का)। भावस्स = भाव का । कम्मत्त = कर्मत्व को । परिणम = प्राप्त करता है। तम्हि = उसके होने पर । सय = अपने आप । पोग्गल = पुद्गल । दव्व = द्रव्य।
68 अण्णाणी (अण्णाणि) 1/1 वि पुण (अ) = और रत्तो (रत्त) भूकृ 1/1
अनि हि (अ) = निस्सन्देह सव्वदन्वेसु [(सव्व)-(दव्व) 7/2] कम्ममज्झगदो [(कम्म)-(मज्झ)-(गद) भूक 1/1 अनि] लिप्पदि (लिप्पदि) व कर्म 3/1 सक अनि कम्मरयेण [(कम्म)-(रय) 3/1] दु (अ) = अत कद्दममझे [(कद्दम)-(मज्झ) 7/1] जहा (अ) = जिस
प्रकार लोह (लोह) 1/1।। 68 अण्णाणी = अज्ञानी । पुरण = और । रत्तो = आसक्त । हि = निस्सन्देह ।
सव्वदन्वेसु = सव वस्तुप्रो मे । कम्ममझगदो = कर्म के मध्य मे फसा हुआ। लिप्पदि = मलिन किया जाता है । कम्मरयेण = कर्मरूपी रज से । दु= अत । कद्दममझे = कीचड मे (पडा हुआ)। जहा = जिस प्रकार । लोह = लोहा ।
69 प्रादा (प्राद) 1/1 कम्ममलिमसो [(कम्म) - (मलिमस) 1/1 वि]
धारदि (धार) व 3/1 सक पाणे (पाण) 2/2 पुणो पुणो (प्र) = बारवार अण्णे (अण्ण) 2/2 वि ण (अ) = नहीं जहदि (जह) व 3/1 सक जाव = जब तक ममत्त (ममत्त) 2/1 देहपधाणेसु [(देह)- (पधाण)
7/2 वि] विसएसु (विसम) 7/2। 69 प्रादा- आत्मा । कम्ममलिमसो = कर्मों से मलिन । धारदि = धारण करती
है । पाणे = प्राणो को । पुणो पुणो = बार-बार । अण्णे = नवीन । ण= नही । जहदि = छोडती है। जाव = जव तक। ममत्त = ममत्व को । देहपधाणेसु = मूल मे शरीर । विसएसु = विषयो मे ।
70 वत्यु (वत्यु) 2/1 पड़च्च (अ) = आश्रय करके त (त) 1/1 सवि
पुण (अ) = फिर अन्झवसाण (अज्झवसाण) 1/1 तु (अ) = निस्सदेह होदि (हो) व 3/1 अक जीवाण (जीव) 6/2 ण (अ) = नही हि (अ) = वास्तव मे वत्युदो (वत्थु) पचमी अर्थक 'दो' प्रत्यय दु (अ) =
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द्रन्य-विचार

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