Book Title: Aacharya Kundakunda Dravyavichar
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Jain Vidya Samsthan
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उग्गहादिहि [(उग्गह) + (आदिहि)] [(उग्गह) - (आदि) 3/2] सुहत्ति [(सुह) + (इति)] सुह (सुह) मूलशब्द 1/1 इति (अ) = स्पष्टीकरण एयतिय (एयतिय) 1/1 वि भणिद (भण) भूकृ 1/11 जाद - उत्पन्न हुआ । सय = आप से प्राप । समत्त = पूर्ण । णाणमणतत्थवित्थिद = णाण+अणत+अल्थ+वित्थिद = ज्ञान, अनन्त पदार्थों मे फैला हुआ । विमल = शुद्ध । रहिद = रहित । तु = और । उग्गहादिहि = अवग्रह आदि से । सुहत्ति = सुख । एयतिय = अद्वितीय । भरिणद = कहा गया ।
63 जादो (जा) भूकृ 1/1 सय (अ) = स्वय स (त) 1/1 सवि चेदा (चेदा)
8/1 सम्वण्हू (सव्वण्हु) 1/1 सवलोगदरसी [(सन्व)- (लोग)(दरसि) 1/1 वि] य (अ) = और पप्पोदि (पप्पोदि) व 3/1 सक अनि सुहमणत [(सुह) + (अणत)] सुह (सुह) 2/1 अणत (अणत) 2/1 वि अश्वावाध (अव्वावाघ) 2/1 वि सगममुत्त [(सग) + (अमुत्त)] सग
(सग) 2/1 वि अमुत्त (अमुत्त) 2/1 वि । 63 जादो हुआ। सयस्वय । स= वह । चेदा= हे मनुष्य । सव्वण्हू %3D
जिन । सव्वलोगदरसी= सब लोक को देखनेवाला। य% और । पप्पोदि - प्राप्त करता है। सुहमणतं- सुख, अनन्त । अव्वावाध = बाधा-रहित । सगममुत्त = सग+अमुत्त = निजी, इन्द्रियातीत ।
64 तिमिरहरा [(तिमिर)- (हर →हरा स्त्री) 1/1 वि] जइ (अ) = यदि
दिट्ठी (दिट्ठी) 1/1 जणस्स (जण) 6/1 दीवेण (दीव) 3/1 एत्यि (अ) = नही कादव्य (का) विघि कृ 1/1 तध (अ) = उसी प्रकार सोक्ख (सोक्ख) 1/I सयमादा [(सय) + (मादा)] सय (अ) = स्वय प्रादा (पाद) 1/I विसया (विसय) 1/2 किं (क) 1/1 सवि तत्य (अ) = वहा पर कुन्वति (कुन्व) व 3/2 सक । तिमिरहरा - अधेपन को हटानेवाली । जइ = यदि । दिछी = माख । जएस्समनुष्य की । दीवेण = दीपक के द्वारा । पत्थि = नही । कादव्व % किये जाने योग्य । तध= उसी प्रकार । सोक्ख = सुख । सयमादा = स्वय आत्मा । विसया - विपय । कि क्या प्रयोजन । तत्य % वहा । कुवति = करते हैं→ करेंगे । तिमिर-अधापन, आप्टे, सस्कृत हिन्दी कोश ।
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द्रव्य-विचार

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