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(अक्ख) + (गुण) + (समिद्धस्स)] [(सव्व) – (अक्ख) - (गुण) - (समिद्ध) भूक 4/1 अनि) अक्खातीदस्स [(अक्ख) + (अतीदस्स)] [(अक्ख)- (प्रतीद) 4/1] सदा (अ) = सदा सयमेव [(सय)+ (एव)] सय (अ) = स्वय एव (अ) ही हि (अ) = निस्सदेह
पाणजादस्स [(णाण) - (जाद) भूक 4/1] । 57 रणत्थिनही है । परोक्ख = परोक्ष । किंचिवि = कुछ भी । समत = सब
ओर से । सव्वक्खगुणसमिद्धस्स = सव इन्द्रियो के गुणो से सम्पन्न (व्यक्ति) के लिए । अक्खातीदस्स = सव इन्द्रियो से परे पहुंचे हुए (ज्ञान) के लिए। सदा-सदा । सयमेव % स्वय ही। हि-निस्सदेह । णाणजादस्स-ज्ञान को प्राप्त (व्यक्ति) के लिए ।
58. गेहदि (गेण्ह) व 3/1 सक णेव (अ) = न ही ण (अ) = न मुचदि (मुच)
व 3/1 सक पर (पर) 2/1 वि परिणमदि (परिणम) व 3/1 अक केवली (केवलि) 1/1 भगव (भगव) 1/1 पेच्छदि (पेच्छ) व 3/1 सक समतदो (प्र) = सव ओर से सो (त) 1/1 सवि जाणदि (जाण) व 3/1 सक सव्व (सव्व) 2/1 सवि गिरवसेस (क्रिविन) = पूर्ण
रूप से। 58 गेहदि = करता है→ करते हैं। वन ही । न । मुचदि =
छोडते है । = नही । परिणमदि = रूपान्तरित होते हैं। केवली= केवली। भगव = भगवान । पेच्छदि = देखते है । समतदो सब ओर से । सो वह-वे । जारणदि = जानते हैं । सव्व = सब को । णिरवसेस = पूर्ण रूप से।
59 सोक्ख (सोक्ख)1/1 वा (अ) == अथवा पुण (अ) = पादपूरक दुक्ख
(दुक्ख) 1/1 केवलणाणिस्स (केवलणाणि)6/1 णस्थि (अ) = नही है. होता है वेहगद [(देह)- (गद) भूक 1/1 अनि] जम्हा (म)%3D चूकि अदिदियत्त (अदिदियत्त)1/1 जाव (जा) भूकृ1/1 तम्हा (म) 3 इसलिए दु (म) = ही त (त) 1/1 सवि णेय (णेय) विधि कृ
1/1 भनि । 59 सोक्खं = सुख । वा अथवा । पुण (अ) = पादपूरक । दुक्ख = दुख ।
केवलणाणिस्स = केवलज्ञानी के। पत्थि = नही होता है । देहगद = शरीर के द्वारा प्राप्त । जम्हा = चूकि । प्रादिदियत्त = अतीन्द्रियता । जाव %
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द्रव्य-विचार