________________
1 यहा 'अप्पा' का 'अप्प' हुआ है। आगे 'त्ति' सयुक्त अक्षर होने से
अप्पा का अप्प हुआ है (हेम-प्राकृत-व्याकरण, 1-84)। 2 विना के योग मे द्वितीया, तृतीया या पचमी विभक्ति होती है । 54 णाण = ज्ञान । अप्पत्ति = प्रात्मा, इस प्रकार । मदं = स्वीकृत । वट्टदि =
होता है। णाण = ज्ञान । विणा= विना । = नही । अप्पाणं = प्रात्मा के । तम्हा= इसलिए । णाणं = ज्ञान । अप्पा= प्रात्मा। अप्पा-आत्मा ।
पाण= ज्ञान । व= तथा । अण्ण = अन्य । वा= भी। 55 जो (ज) 1/1 सवि जाणदि (जाण) व 3/1 सक सो (त) 1/1 सवि
गाणं (गाण) 1/1 रण (प्र) = नही हवदि (हव) व 3/1 अक गाणेण (णाण) 3/1 जाणगो (जाणग) 1/1 वि मादा (आद) 1/1 पाण (णाण) 1/1 परिणमदि (परिणम) व 3/1 अक सय (अ) =स्वयं अट्ठा (अट्ठ) 1/2 पाएट्ठिया [(णाण)-(ट्ठिय) भूक 1/2 अनि] सव्वे
(सन्व) 1/2 वि । 55 जो जो । जाणदि = जानता है । सो वह । वाण = ज्ञान । ण (म) =
नही । हवदि = होता है । णाणेण = ज्ञान के द्वारा । जाणगो जाननेवाला । प्रादा = प्रात्मा । णाणं = ज्ञान । परिणमदि = रूपान्तरित होता है। सय = स्वय । अट्ठा = पदार्थ । णाणद्विया=ज्ञान में स्थित । सव्वे % सब ।
56 तिक्कालरिणच्चविसम [(तिक्काल)-(णिच्च)-(विसम) 1/1 वि]
सयलं (सयल) 2/1 वि सम्वत्थ (अ) = हर समय सभव (सभव) 2/1 चित्त (चित्त) 2/1 वि जुगव (प्र) = एक साथ जाणदि (जाण) व 3/1 सक जोण्ह (जोण्ह) 1/1 अहो (अ) = हे मनुष्यो । हि (म) निश्चयपूर्वक
णाणस्स (णाण) 6/1 माहप्प (माहप्प) 1/11 56 तिषकालणिच्चविसमं = तीनो कालो मे, अविनाशी, अनुपम । सयल =
सम्पूर्ण को। सम्वत्थ = हर समय । सभव = सभावनाओ को । चित्त% विविध (को) । जुगव = एक साथ । जाणदि = जानता है । जोह % प्रकाश । अहो हे । हि = निश्चयपूर्वक । णास्स = ज्ञान की । माहप्प %=
महिमा। 57 पत्थि (अ) = नही है परोक्ख (परोक्ख) 1/1 किचिवि (अ) = कुछ भी समत (अ) = सब ओर से सव्वक्खगुणसमिद्धस्स [(सम्व) +
प्राचार्य कुन्दकुन्द