Book Title: Aacharya Kundakunda Dravyavichar
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 72
________________ है। तमणेगविध = त+प्रणेगविध = वह, अनेक प्रकार । भणिद = कही गई है। फलत्ति = फल = (कर्म)-फल (चेतना) । मोक्ख = मुख । = तथा । दुक्ख = दु ख । वा (अ) = अथवा । 28 सव्वे (सव)1/2 वि खलु (अ) = वाक्य की शोभा कम्मफल [(कम्म) (फल) 2/1] थावरफाया (धावरकाय) 1/2 वि तसा (तम) 1/2 वि हि (अ) = पादपूरक कज्जजुद [(कज्ज)-(जुद) भूक 2/1 अनि] पारिणत्तमदिक्कता [(पाणित्त)+ (आदिक्कत्ता)] पाणित्त (पाणित्त) 2/1 आदिक्कता (आदिक्कत) भूक 1/2 अनि गाण (णाण) 2/1 विदति (विंद) व 3/2 सक ते (त) 1/2 सवि जीवा (जीव) 1/2 । 28 सवे- सभी । कम्मफल = कर्म के फल को। थावरकाया= स्थावर काय । तसा त्रस । फज्जजद = प्रयोजन से मिली हुई। पाणित्तमदिक्कतापाणित्त+अदिक्कता=प्राणीत्व को, पार किए हुए। णाण =ज्ञान को। विदंति = अनुभव करते है । ते = वै । जीवा = जीव । 29 एदे (एद) 1/2 सवि जीवरिणकाया [(जीव)-(णिकाय) 1/2] पचविहा (पचविह) 1/2 वि पुढविकाइयादीया [(पुढविकाइया)+ (आदीया)] [(पुटविकाइय)-(आदीय) 1/2] मणपरिणामविरहिदा [(मण)-(परिणाम)-(विरह) भूक 1/2] जीवा (जीव) 1/2 एगेंदिया [(एग)+ (इदिया)] [[(एग) वि-(इदिया) 1/2] वि] भरिणया (भण) भूक 1/21 29 एदे = ये । जीवणिकाया = जीव-समूह । पचविहा=पाच प्रकार | पुढ विकाइयादीया = पुढविकाइय+आदीया = पृथिविकायिक, आदि । मणपरिणामविरहिदो = मन के प्रभाव मे रहित । जीवा= जीव । एगेंदिया = एक इन्द्रियवाले । भणिया = कहे गये । 30 अडेसु (अड) 7/2 पवड्ढता (पवड्ढ) व 1/2 गम्भत्या (गन्मत्य) 1/2 माणुसा (माणुस) 1/2 य = तथा मुच्छगया [(मुच्छ)-(गय) भूक 1/2 अनि] जारिसया (जारिस) 1/2 'य' स्वार्थिक तारिसया (तारिस) 1/2 जीवा (जीव) 112 एगेंदिया [(एग)+ (इदिया)] [एग) वि(इदिय) 1/2] वि णेया (णेय) विधिक 1/2 अनि । 1 समास मे दीर्घ का ह्रस्व (मुच्छा- मुच्छ) (हेम-प्राकृत व्याकरण, 1-4)। 56 प्राचार्य कुन्दकुन्द

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