Book Title: Aacharya Kundakunda Dravyavichar
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 73
________________ 30 अडेसु= अण्डो मे। पवडढता = बढते हुए । गम्भत्या गर्भ में स्थित । माणुसा= मनुप्य । य% तथा । मुच्छगया बेहोश । जारिसया % जिस प्रकार । तारिसया = उसी प्रकार । जीवा = जीव । एगेंदिया = एक इन्द्रियवाले । भणिया = कहे गये । 31 सरफमादुवाहा [(सवुक्क)-(मादुवाह) 1/2] सखा (सख) 1/2 सिप्पी (सिप्पि) 1/2 अपादगा (प्र-पादग) 1/2 वि य = और किमी (किमि) 1/2 जाणति (जाण) व 3/2 सक रस (रस) 2/1 फास (फास) 2/1 जे (ज) 1/2 सवि ते (त) 1/2 सवि बेइदिया [(वे) वि-(इदिय) 1/2] वि] जीवा (जीव) 1/21 सवुक्कमादुवाहा = शवूक, मातृवाह । सखा = शख । सिप्पी = सीप । अपादगा= बिना परवाले । य= और । किमी कीट । जाणति = जानते हैं । रस = रस को । फास= स्पर्श को । जे = जो । ते वे । वेइ दिया-दो इन्द्रियवाले । जीवा = जीव । 32 गागुभीमक्करणपिपीलिया [(जूगा)-(गुभी)-(मक्कण)-(पिपीलिया) 1/1] विच्छियादिया [(विच्छिय)+ (प्रादिया)] [(विच्छिय)(पादिय) 1/2 'य' स्वार्थिक] कीडा (कीड) 1/2 जाणति (जाण) व 3/2 सक रस (रस) 2/1 फास (फास) 2/1 गघ (गघ) 2/1 तेइदिया [[(ते)-(इदिय) 1/2] वि] जीवा (जीव) 1/21 जूगागुभीमक्कणपिपीलिया = जू, कुम्भी, खटमल, चीटी। विच्छियादियाविच्छिय+यादिया = विच्छ्र, आदि । कीडा = कीडे । जाणति = जानते हैं । रस = रस को । फास = स्पर्श को । गध = गन्ध को । तेइदिया = तीन इन्द्रियवाले । जीवा = जीव । 33 उद्दसमसयमक्खियमधुकरभमरा [(उद्दस) - (मसय) - (मक्खिय) (मधुकर)-(भमरा) 1/2] पतगमादीया [(पतग) + (प्रादीया) ] पतग (पतग) 2/1 आदीया (आदीय) 1/2 'य' स्वार्थिक रूप (रूप) 2/1 रस (रस) 2/1 च (म) = और गध (गध) 2/1 फास (फास) पुण (अ) = पादपूरक । ते (स) 1/2 सवि विजाणति वि (अ) = प्रत. जाणति (जाण) व 3/2 सक । कमी कभी प्रथमा के स्थान पर द्वितीया का प्रयोग पाया जाता है । (हेम प्राकृत-व्याकरण, 3-137 वृत्ति)। 57 दव्य-विचार

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