Book Title: Aacharya Kundakunda Dravyavichar
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Jain Vidya Samsthan
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25 कम्माण (कम्म) 6 / 2 फलमेक्को [ (फल) + (एक्को) ] फल ( फल ) 2 / 1 एक्को ( एक्क) 1 / 1 वि एक्को ( एक्क) 1 / 1 वि कज्ज ( कज्ज) 2 / 1. तु ( श्र) = तथा णाणमध [ ( णाण ) + (अघ ) ] णाण (जाण) 2 / 1. प्रध ( प्र ) = व एक्को ( एक्क) 1 / 1 वि चेदयदि ( चेदयदि ) व 3 / 1 सक अनि जीवरासी [ (जीव ) - ( रामि) 1 / 1] वेदगभावेण [ ( चेदग ) - (भाव) 3 / 1] तिविहेण (तिविह) 3 / 1 वि ।
25 कम्माण = कर्म के । फलमेक्को = कुछ फल को । एक्को = कुछ । कज्ज = प्रयोजन को । तु = तथा । णाणमघ णाण + अध = ज्ञान को, अव । एक्को = कुछ | चेदर्यादि = अनुभव करता है। जीवरासी = जीव समूह | चेदगभावेण = सचेतन परिणमन से ।
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तिघा
(
अ ) = तीन प्रकार से, प्रभिमदा
परिणमदि (परिणम ) व 3 / 1 ग्रक चेदरणाए ( चेदणा) 7/1 श्रादा ( श्रादा) 1 / 1 पुरण (श्र) = तथा चेदरणा ( चेदणा ) 1 / 1 तिधाभिमदा [ ( तिघा ) + ( श्रभिमदा ) ] ( अभिमदा ) भूकृ 1 / 1 अनि सा जाणे (जाण) 7/1 कम्मे (कम्म) 7/1 फलम्मि (फल) 7/1 वा ( अ ) तथा कम्मर (कम्मणो) 6 / 1 अनि भणिदा ( भण) भूकृ 1 / 1 |
(ता ) 1 / 1 सवि पुरण ( अ ) = फिर
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=
परिणमदि : स्पान्तरित होती है । चेदणाए = चेतनारूप मे । प्रादा = श्रात्मा । पुण (श्र) = तथा । चेदणा = चेतना । तिधाभिमदो = तिघा + श्रभिमदा = तीन प्रकार से, मानी गई है । सा = वह । पुरण = फिर । गाणे: = ज्ञान मे । कम्मे = कर्म मे । फलाम्मि = फल मे कम्मणो = कर्म के | भणिदा = कही गई है ।
। वा = तथा ।
त (त)
णाण (जाण) 1 / 1 श्रत्थवियप्पो [ ( श्रत्थ ) - ( वियप्प ) 1 / 1 ] कम्म (कम्म) 1 / 1 जीवेण (जीव ) 3/1 ज ( ज ) 1/1 सवि समारद्ध ( समारद्ध) भूकृ 1 / 1 अनि तमणेगविध [ ( त ) + (अणेगविध ) ] 1 / 1 सवि श्रणेगविध ( श्रणेगविध ) 1 / 1 वि भणिद ( भण) भूकृ 1 / 1 फलत्ति [ ( फल ) + (त्ति ) ] फल (फल) मूल शब्द 1 / 1 त्ति ( अ ) शब्दस्वरूप द्योतक सोक्ख (सोक्ख ) 1/1 व (श्र) = तथा दुक्ख ( दुक्ख ) 1 / 1 वा ( अ ) = प्रथवा ।
गाण
= ज्ञान- - (चेतना) । श्रत्थवियप्पो = पदार्थ का विचार । कम्म = कर्म - (चेतना) | जीवेण = जीव के द्वारा । ज = जो । समारद्ध = धारा गया
द्रव्य- विचार
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