Book Title: Aacharya Kundakunda Dravyavichar
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Jain Vidya Samsthan
View full book text
________________
घमौर । णिच्च = मदेव । सग = निज (को) । सभाव = स्वभाव को ।
= नही । विजहति = छोडते हैं ।
20 जीवोत्ति [(जीवों) + (इति)] जीवो (जीव) 1/1 इति (अ) = शब्द
स्वरूप द्योतक हवदि (हव) व 3/1 अक चेदा (चेदा) 1/1 वि उपप्रोगविसेसिदो [(उपयोग)-(विसेसिद) भूक 1/l अनि] पहू (पहु) 1/1 वि कत्ता (कत्तु) 1/1 वि भोत्ता (भोत्तु) 1/1 वि य (अ) = तथा देहमतो [(देह)-(मत्त) 1/1 वि] हि (अ) = कभी भी नही मुत्तो
(मुत्त) 1/1 वि कम्मसजुत्तो [(कम्म)-(सजुत्त) भूकृ 1/1 अनि] 20 जीवोत्ति = जीवो+इति = जीव । हवदि = होता है। चेदा = चेतनामय ।
उपभोगविसेसिदो-ज्ञान-गुण की विशेपता लिये हुए । पहू = समर्थ ।कत्ता = कर्ता । भोत्ता = भोत्ता । य = तथा। देहमेत्तो देह जितना । ण हि = कभी भी नहीं । मुत्तो- इन्द्रियो द्वारा ग्रहण (मूर्त) । कम्मसजुत्तो = कर्मों से युक्त ।
पाणेहिं (पाण) 3/2 चहि (चदु) 3/2 वि जीवदि (जीव) व 3/1 अक जीवस्सदि (जीव) भवि 3/1 अक जो (ज) 1/1 सवि हु (अ) = तथा जीविदो (जीव) भूक 1/1 पुन्च (अ) = विगत काल मे सो (त) 1/1 सवि जीवो (जीव) 1/1 पाणा (पाण) 1/2 पुण (अ) = और बलमिदियमाउ [(बल)+ (इदिय) + (पाउ)] वल (बल) 1/1 इदिय (इदिय) 1/1 आउ (पाउ) मूलशब्द 1/1 उस्सासो (उस्सास)
1/11 21 पाहि प्राणो से। चहि - चार (से) । जीवदि = जीता है । जीव
स्सदि = जीवेगा । जो-जो । ह= तथा । जीविदो= जिया । पुन्व = विगत काल मे । सो वह । जीवो जीव । प्राणाप्राण । पुण% और । बलमिदियमाउ = वल+इदिय+प्राउ = बल, इन्द्रिय, आयु । उस्सासोश्वाम।
22 जीवा (जीव) 1/2 ससारत्था (समारत्थ) 1/2 वि रिणवादा (णिव्वाद)
भूक 1/2 अनि चेदरणप्पगा [(चेदण)+ (अप्पगा)] [(चेदण)(अप्पग) 1/2 ग स्वार्थिक वि] दुविहा (दुविह) 1/2 वि उवनोगलक्खणा[[(उवयोग)-(लक्खण) 1/2] वि] वि भी य= तथा
द्रव्य-विचार

Page Navigation
1 ... 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123