Book Title: Aacharya Kundakunda Dravyavichar
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Jain Vidya Samsthan

View full book text
Previous | Next

Page 70
________________ देहादेहप्पवीचारा [(देह) + (प्रदेह) + (प्पवीचारा)] [[(दह)(अदेह)-(प्पवीचार) 1/2] वि] प्रविचार, पविचार = भेद (Monier williams, Saming Dictionery)। 22 जीवा = जीव । ससारत्या = ममार मे स्थित । णिव्यादा = ममार मे मुक्त । चेदणप्पगा= चेतना स्वरूपवाले । दुविहा = दो प्रकार के। उवयोगलक्खरणा ज्ञान-स्वभाववाले । वि= मी । यतया । देहादेहप्पवीचारा = देहसहित और देहरहित भेदवाले । 23 एदे (एद) 1/2 सवि सवे (मन्व) 1/2 सवि भावा (भाव) 1/2 ववहारणय (ववहारणय) 2/1 पडुच्च (अ) = अपेक्षा करके भणिदा (भण) भूकृ 1/2 -हु (अ) = सचमुच सव्वे (मब) 1/2 सवि सिद्धसहावा [ (सिद्ध)-(सहाव) 1/2] सुद्धणया (मुद्धणय) 5/1 ससिदी (ससिदि) 1/1 जीवा (जीव) 1/21 23 एदे = ये । सव्वे = सभी । भावाभाव । ववहारणय व्यवहारनय को । पडुच्च (अ) = अपेक्षा करके । भरिणदा= कहे गये हैं । हु (अ) = सचमुच । सवे = सभी । सिद्धसहावा = मिद्ध स्वरूप । सुद्धणया= शुद्धनय से । ससिदी = मसार-चक्र । जीवा = जीव । 24 अप्पा (अप्प) 1/1 परिणामप्पा [(परिणाम) + (अप्पा)] [(परिणाम)-(अप्प) 1/1] वि] परिणामो (परिणाम) 1/1 गाणकम्मफलभावी [(णाण)-(कम्म)-(फल)-(भावि) 1/1 वि] तम्हा (अ) = इसलिए णाण (णाण) 1/1 फम्म (कम्म) 1/1 फल (फल) 1/1 च (अ) = और प्रादा (पाद) 1/1 मुणेदव्वो (मुण) विधिक 1/11 24 अप्पा-आत्मा । परिणामप्पा = परिणाम-स्वभाववाला । परिणामो = परिणाम । णाणकम्मफलभावी = ज्ञान-(चेतना), प्रयोजन-(चेतना), (कर्म)-फल-(चेतना) के रूप मे, होनेवाला। तम्हा= इसलिए । णाण = ज्ञान-(चेतना) । फम्म = प्रयोजन-(चेतना)। फल % (कर्म)फल-(चेतना)। घऔर । प्रादा = आत्मा । मुणेदवो = ममझी जानी चाहिए। 54 प्राचार्य कुन्दकुन्द

Loading...

Page Navigation
1 ... 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123