Book Title: Aacharya Kundakunda Dravyavichar
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 30
________________ 42 श्रारुहवि अंतरप्पा बहिरप्पा छंडिऊण तिविहेण । भाइज्जइ परमप्पा उवइट्ठे जिणर्वारिदेहि ॥ 43. जो पस्सदि अप्पाणं श्रबद्धपुढं श्ररण्णयं णियदं । श्रविसेसमसंजुत्तं तं सुद्धणयं वियाणाहि ॥ 44. अरसमरूवमगंध अव्वत्तं चणागुणमसद्दं । जारणमलिंगग्गहणं जीवमरिद्दिट्ठसंठाणं ॥ 45. ववहारोऽभूदत्यो भूदत्यो देसिदो दु सुद्धणो । भूदत्थ मस्सिदो खलु सम्मादिट्ठी हवदि जीवो ॥ 46 जीवे कम्मं बद्धं पुढं चेदि ववहाररणयभणिदं । सुद्धरणयस्स टु जीवे श्रबद्धपुट्ठे हवदि कम्मं ॥ 47. कम्मं बद्धमबद्धं जीवे एदं तु जाण णयपक्खं । tarक्खातिक्कतो भण्णदि जो सो समयसारो ॥ 48 जीवो ववगदमोहो उवलद्धो तच्चमप्परणो सम्मं । जहदि जदि रागदोसे सो अप्पाणं लहदि सुद्धं ॥ 14 प्राचार्य कुन्दकुन्द

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