Book Title: Aacharya Kundakunda Dravyavichar
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 52
________________ 121. भूपव्वदमादीया भणिदा अइथूलथूलमिदि खंधा । थूला इदि बिण्णेया सप्पीजलतेलमादीया ।। 122. छायातवमादीया थूलेदरखंधमिदि वियाणाहि । सुहम थूलेदि भणिया खंधा चउरक्खविसया य ॥ 123. सुहमा हवंति खंधा पावोग्गा कम्मवग्गरणस्स पुणो । तविवरीया खधा अइसुहमा इदि पस्वेदि ॥ 124. अत्तादि अत्तमझ अत्तंतं रोव इंदिए गेभं । अविभागी जं दव्वं परमाणू तं वियाणाहि ॥ 125. एयरसरूवगंधं दो फासं तं हवे सहावगुणं । विहावगुणमिदि भरिणदं जिणसमये सव्वपयडतं ।। 126. अण्णनिरावेक्खो जो परिणामो सो सहावपज्जायो । खंघसरूवेण पुणो परिणामो सो विहावपज्जायो । 127. धम्मस्थिकायमरसं अवण्णगंधं असहमप्फासं । ___ लोगोगाढं पुळं पिहुलमसंखादियपदेसं ॥ 128 उदयं जह मच्छाणं गमणाणुग्गहयरं हदि लोए । तह जीवपुग्गलाणं धम्मं दव्वं वियाणेहि ।। 36 भाचायं कुन्दकुन्द

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