Book Title: Aacharya Kundakunda Dravyavichar
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 65
________________ 8 = जो । इन्दियगेज्झाइन्द्रियो से ग्रहण किये जाने योग्य । विसया = पदार्थ । जोवेहि = जीवो द्वारा । होति = होते है । ते = वे । मुत्ता = मूर्त । सेस-शेष । हवदि-होता है । अमुत्त = अमूर्त । चित्त = चित । उभय = दोनो को । समादियदि = भली प्रकार से समझता है। वण्णरसगधफासा [(वण्ण) - (रस)- (गघ) - (फास)1/2] विज्जते (विज्जते) व 3/2 अक अनि पुग्गलस्स! (पुग्गल) 6/1 सुहमादो (सुहम)5/1 पुढवीपरियतस्स ([पुढवी) - (परियत)6/1 वि] य - भी सद्दी (सद्द) 1/1 सो (त)1/1 सवि पोग्गलो (पोग्गल) 1/1 चित्तो (चित्त)1/1 वि । 1 कमी-कभी पष्ठी विमक्ति का प्रयोग सप्तमी के स्थान पर पाया जाता है (हेम-प्राकृत व्याकरण, 3-134)। 9 वण्णरसगधफासा = वर्ण, रस, गध, स्पर्श । विज्जते = वर्तमान रहते हैं । पुग्गलस्स-पुद्गल के → पुद्गल मे । सुहमादो = सूक्ष्म से । पुढवीपरियतस्स-पृथिवी तक फैले हए । य = और । सहो = शब्द । सो वह । पोग्गलो = पुद्गलो । चित्तो = विभिन्न प्रकार का। 10-11 मागासस्सवगाहो [(पागासस्स)+ (अवगाहो)] आगासस्स (मागास) 6/1 अवगाहो (अवगाह) 1/1 धम्मद्दवस्स [(धम्म)-(व) 6/1] गमणहेदुत्त [(गमण)-(हेदुत्त) 1/1] धम्मेदरदन्वस्स [(धम्म)+ (इदर)+ (दव्वस्स)] [(धम्म)-(इदर) वि-(दव्व) 6/1] दु(प्र) = तो गणो (गुण) 1/1 पुणो और ठाणकारणदा [(ढाण)-(कारणदा) 1/1] कालस्स (काल) 6/1 वट्टणा (वट्टणा) 1/1 से (अ) = वाक्य की शोमा, गुणोवनोगोत्ति [ (गुण)+ (उवोगो) + (त्ति)] [(गुण)(उवप्रोग) 1/1] ति (म) = शब्दस्वरूपद्योतक अप्पणो (अप्प) 6/1 भणिदो (भण) भूकृ 1/I णेया (णेय) भूकृ 1/2 अनि सखेवादो (सखेव) 5/1 गणा (गुण) 1/2 हि (अ) =ही मुतिप्पहीणाण [(मुत्ति)(प्पहीण) भूक 6/2 अनि] पागासस्सवगाहो-आकाश का, स्थान । धम्मद्दवस्स = धर्म द्रव्य का । गमणहेतुत्त = गमन मे निमित्तता । धम्मेदरदव्वस्स - धर्म के, विरोधी, द्रव्य का । दु= तो । गुणो = गुण । पुणो और । गणकारणदा= स्थिति (ठहरने) मे कारणता। 49 द्रव्य-विचार

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