Book Title: Aacharya Kundakunda Dravyavichar
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Jain Vidya Samsthan
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कालस्स = काल का । वट्टणा = परिणमन (परिवर्तन) । गुणावोगोत्ति = गुण, उपयोग (ज्ञान-चैतन्य) । अप्पणो = प्रात्मा का । भणिदो = कहा गया । णेया = समझे जाने चाहिए । सखेवादो = मक्षेप में । गुणा = गुण । हि = ही । मुत्तिप्पहीणाण = मूर्तिरहित (द्रव्यो) के।
12 पागासकालपुग्गलधम्माधम्मेसु [(पागाम) + (काल) + (पुग्गल)+
(धम्म) + (अधम्मेमु)] [(पागाम)-(काल)-(पुग्गल)-(धम्म)(अधम्म )7/2] गत्यि = नही (रहते) हैं । जीवगुणा [ (जीव)-(गुण) 1/2] तेसि (त) 6/2 म अचेदणत्त (अचेदणत्त) 1/1 भाणिद (मण) भूकृ 1/1 जीवस्स (जीव) 6/I चेदणदा (चेदणदा) 1/11 1 कभी कभी पष्ठी का प्रयोग मप्तमी के स्थान पर पाया जाता है (हेम
प्राकृत व्याकरण, 3-134)। आगासकालपुग्गलधम्माघम्मेसु = आकाश, काल, पुद्गल, धर्म, अधर्म मे । णत्थि = नही रहते है । जीवगुणा = जीव के गण । तेसि = उनके- उनमे । अचेदरणत्त = अचेतनता । भणिद = कही गई है। जीवस्स= जीव के+जीव मे । चेदणदा= चेतनता ।
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जीवा = जीव 1/2 पुग्गलकाया [(पुग्गल)-(काय)1/2] सह (अ) = साथ-साथ, सक्किरिया |(म) वि-(निकरिया) 1/1] हवति (हव) व 3/2 अक ण (अ) = नही य = किन्तु सेसा (मेस) 1/2 वि पुग्गलकरणा [(पुग्गल)-(करण) 5/1] जीवा (जीव) 1/2 सधा (वय) 1/2 खलु (अ) = पादपूरक कालकरणा [(काल)-(करण)5/1] दु (अ) =
और। जीवा = जीव । पुग्गलकाया = पुद्गलराशि । सह = साथ-माथ । सक्किरिया = क्रिया-महित । हवति = होते है। ण = नही। य= किन्नु । सेसा = (शेप) । पुग्गलकरणा = पुद्गल के निमित्त से । जीवा = जीव । खधा = पुद्गल (स्कन्ध) । कालकरणा= काल के निमित्त से । दु= और।
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एदे (एद) 1/2 सवि छद्दन्वाणि[(छ)-(दव्व) 1/2] य = पादपूरक काल (काल) 2/1 मोत्तूण (मोत्तण) सकृ अनि प्रत्थिकात्ति [(अत्थिकाय)+ (त्ति)] अत्थिकाय (अत्थिकाय)/मूलशब्द 1/2 ति (अ) = शब्दस्वरूपद्योतक । गिठिा (णिदि) भूक 1/2 अनि जिणसमये
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प्राचार्य कुन्दकुन्द

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