Book Title: Aacharya Kundakunda Dravyavichar
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Jain Vidya Samsthan

View full book text
Previous | Next

Page 63
________________ 3 दव्वं (दव) 1/1 जीवमजीव [ (जीव) + (अजीव)] जीव (जीव) 1/1 अजीव (अजीव) 1/1 जीवो (जीव) 1/1 पुण (प) = और चेदणोक्योगमयो [(चेदण)+ (उवयोगमयो)] [चेदण)-(उवयोगमय) 1/1 वि] पोग्गलदन्वप्पमुहं [(पोग्गल)-(दव्व)-(प्पमुह)11/1 वि] अचेवण (अचेदण) 1/1 वि हववि (हव) व 3/1 प्रक य (अ) = इसके विपरीत अजीव (अजीव) 1/1। I समास के अन्त में अर्थ होता है 'सहित' (आप्टे, सस्कृत-हिन्दी कोश)। दव्व = द्रव्य । जीवमजीव = जीव, अजीव । जीवो - जीव । पुण = और । चेदणोवयोगमयो= चेतन, उपयोगमय । पोग्गलदस्वप्पमुह - पुद्गल द्रव्य-सहित । अचेदण = अचेतन । हदि = होता है । य= इसके विपरीत । अजीव - अजीव । जाणदि (जाण) व 3/1 सक पस्सदि (पस्स) व 3/1 सक सम्व (सव्व) 2/1 वि इच्छदि (इच्छ) व 3/1 सक सुक्ख (सुक्ख) 2/1 विभेदि (विभेदि) व 3/1 अक अनि दुक्खादो (दुक्ख) 5/1 कुन्वदि (कुन्व) व 3/1 सक हिदमहिद [(हिद)+ (अहिद)] हिद (हिंद) 2/1 अहिद (अहिद) 2/1 वा (अ) = तथा भुजदि (भुज) व 3/1 सक जीवो (जीव) 1/1 फल (फल)2/1 तेसि (त) 6/2 स। जाणदि = जानता है। पस्सदि = देखता है । सव्व = सबको । इच्छदि = चाहता है । सुक्ख = सुख (को) । विभेदि = डरता है। दुक्खादो- दुख से । कुन्वदि = करता है । हिदमहिद - उचित और अनुचित को । वा तथा । भुजदि = भोगता है । जीवो जीव । फल = फल को । तेसि = उनके। सुहदुक्खजाणणा [(सुह)-(दुक्ख)-(जाणणा) 1/1] वा (भ) = तथा हिदपरियम्मा [(हिद)-(परियम्म) 1/1] च (अ) = तथा अहिदीरत्त [(अहिद)-(भीरुत्त) 1/3] जस्स (ज) 6/1 स ण(अ) = नही विज्जदि (विज्ज) व 3/1 अक णिच्च (अ) = कभी भी त (त) 2/1 स समणा (समण)1/2 बिति (बू) व 3/2 स अज्जीव (अज्जीव)2/11 1 परिकर्मन् →परिकर्म-+ परिकम्म+परियम्म । 2 कभी-कमी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर षष्ठी का प्रयोग पाया जाता है (हेम प्राकृत व्याकरण, 3-134)। 47 द्रव्य-विचार

Loading...

Page Navigation
1 ... 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123