Book Title: Aacharya Kundakunda Dravyavichar
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Jain Vidya Samsthan

View full book text
Previous | Next

Page 57
________________ 136 माप के बिना 'दीर्घ काल' और 'तुरन्त' (ऐसे शब्द) नही (होते हैं)। तथा वह माप भी पुद्गल द्रव्य के बिना नही (होता है)। इसलिए (ऐसा) काल आश्रय से उत्पन्न (है)। 137 (व्यवहार) काल पुद्गल के परिवर्तन से उत्पन्न हुआ (है), परिवर्तन द्रव्यकाल से उत्पन्न हुआ (है)। दोनो का यह स्वभाव (है) । (अत ) (व्यवहार) काल नश्वर (है), और (द्रव्यकाल) स्थायी (है)। 138 जीव आदि द्रव्यो के परिवर्तन का कारण काल होता है। धर्मादि चार अन्य (द्रव्यो) मे स्वभावगुणपर्याय होती है । 139 जो सत्लक्षणयुक्त (है), उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य से सहित है और (जो) गुण और पर्याय का आश्रय (है), वह द्रव्य (है) इस प्रकार सर्वज्ञ कहते है। 140 सत्ता सर्वपदार्थमय होती है, अनेक प्रकारसहित (रहती है), अनन्त पर्यायवाली (है), उत्पाद, व्यय और ध्रुवतामय (है), एक (है), विरोधी पहलू-सहित है। 141 द्रव्य की न उत्पत्ति (होती है) और न ही (उसका) विनाश (होता है)। (वह) (तो) अस्तित्व स्वभाववाला है । उस (द्रव्य) की पर्याये ही उत्पत्ति, नाश और ध्रुवता को प्रकाशित करती है। 142 पर्यायरहित द्रव्य नही है, द्रव्यरहित पर्याय भी (नही है), दोनो का अस्तित्व अभिन्न बना हुआ (है) । (ऐसा) श्रमण कहते है। 143 द्रव्य के बिना गुण नही (होते है), गुण के बिना द्रव्य नही (होता है) । अत द्रव्य और गुण का अस्तित्व अभिन्न होता है। 144 सत् (विद्यमान पदार्थ) का नाश नही (होता है), असत् (अविद्यमान पदार्थ) का उत्पाद नही (होता है) । द्रव्य गुण-पर्यायो के द्वारा ही उत्पाद-व्यय करते है । द्रव्य-विचार

Loading...

Page Navigation
1 ... 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123