Book Title: Aacharya Kundakunda Dravyavichar
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Jain Vidya Samsthan

View full book text
Previous | Next

Page 46
________________ 101. एवं विदिदत्थो जो दव्वेसु ण रागमेदि दोसं वा। उवयोगविसुद्धो सो खवेदि देहुन्भवं दुक्खं ॥ 102. अइसयमादसमुत्थं विसयातीदं अणोवममणंतं । अव्वुच्छिण्ण च सुहं सुद्धवनोगप्पसिद्धाणं ।। 103. धम्मेण परिणदप्पा अप्पा जदि सुद्धसंपयोगजुदो। पावदि णिवाणसुहं सुहोवजुत्तो व सग्गसुहं ।। 104. चारित्तं खलु धम्मो धम्मो जो सो समोत्ति णिट्ठिो । मोहक्खोहविहीणो परिणामो अप्पणो हु समो॥ 105. तह सो लद्धसहावो सवण्हू सव्वलोगपदिमहिदो । भूदो सयमेवादा हवदि सयंभुत्ति णिहिट्ठो ॥ 106. उवयोगविसुद्धो जो विगदावरणतरायमोहरो । भूदो सयमेवादा जादि पर णेयभूदाण ॥ 30 प्राचार्य कुन्दकुन्द

Loading...

Page Navigation
1 ... 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123