Book Title: Aacharya Kundakunda Dravyavichar
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 49
________________ : 107 श्रमण (जिसके द्वारा) तत्व (अध्यात्म) (तथा) (उसका प्रति पादन करनेवाले) सूत्र-(ग्रन्थ) भली प्रकार से जान लिए गये (है), (जो) सयम और तप से सयुक्त (है), (जिसके द्वारा) राग समाप्त कर दिया गया (है), जिसके द्वारा सुख और दु ख समान (समझ लिए गए है), (वह) शुद्धोपयोगवाला (समता को प्राप्त) कहा गया (है)। . 108 उन अरहतो के (उस) समय (अरहत अवस्था) मे खडे रहना, वैठना, गमन करना तथा धर्म (अध्यात्म का उपदेश देना)-(ये सव क्रियाएँ (लोक कल्याण के लिए) निश्चित रूप से (होती है) जैसे कि स्त्रियो मे माताओ का (वालक के कल्याण के लिए) आचरण (होता है)। 109 जो समस्त पुद्गल-पिण्डो का अन्तिम अश (है), उसको (तुम) परमाणु समझो। वह (परमाणु) शाश्वत, शब्दरहित, एक (प्रदेशीय) (है), (वह) अविभाज्य और भौतिक वस्तुप्रो का मूल (है)। 110 (अपने) विवरण से ही (जो) मूत (रूप, रसादि गुणो से युक्त) है, जो चार मूल तत्वो (पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु) का कारण (है), परिणमन गुणवाला (है), स्वय शब्दरहित (है), वह परमाणु समझा जाना चाहिए। 111 शब्द स्कन्धो से उत्पन्न (होता है। स्कन्ध परमाणुओ के सगम समूह से (उत्पन्न होता है)। उनमे (आपसी) स्पर्श से शब्द उत्पन्न होता है। (वह) (स्पर्श) (शब्दो को) अवश्य उत्पन्न करनेवाला (है)। 112 यह द्रव्य (जिसमे) एक रस, (एक) वर्ण, एक गध तथा दो स्पर्श समूह (होते है), (जो) शब्द का कारण (है), (स्वय) शब्दरहित (है) (तथा) (जिसका) स्कन्ध से सबध (रहता है), (वह) परमाणु है । उसको (तुम सब) समझो। 33 द्रग्य-विचार

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