Book Title: Aacharya Kundakunda Dravyavichar
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Jain Vidya Samsthan
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64. तिमिरहरा जइ दिट्ठी जरणस्स दोवेण णस्थि कादव्वं ।
तध सोक्खं सयमादा विसया कि तत्थ कुवंति ।।
65. सयमेव जधादिच्चो तेजो उण्हो य देवदा णभसि ।
सिद्धोवि तधा णाणं सुहं च लोगे तधा देवो ॥
66. परिणमदि जदा अप्पा सुहम्मि असुहम्मि रागदोसजुदो ।
तं पविसदि कम्मरयं णाणावरणादिभावेहि ॥
67. जे कुणदि भावमादा कत्ता सो होदि तस्स भावस्स ।
कम्मत्तं परिणमदे तम्हि सयं पोग्गलं दव्वं ॥
68. अण्णाणी पुण रत्तो हि सव्वदन्वेसु कम्ममझगदो ।
लिप्पदि कम्मरयेण दु कद्दममझे जहा लोहं ।
69. आदा कम्ममलिमसो धारदि पाणे पुरणो पुणो अण्णे ।
ण जहदि जाव ममत्तं देहपधाणेसु विसएसु ॥
70. वत्थु पडुच्च तं पुण अभवसाणं तु होदि जीवाणं ।
रण हि वत्थुदो दु बंधो अज्झवसाणेण बंधो ति ।।
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प्राचार्य कुन्दकुन्द

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