Book Title: Aacharya Kundakunda Dravyavichar
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 42
________________ 87. कोधो व जदा माणो माया लोभो व चित्तमासेज्ज । जीवस्स कुरणदि खोहं कलुसो त्ति य तं बुधा वेति ।। 88. चरिया पमादवहुला कालुस्सं लोलदा य विसयेमु । परपरितावपवादो पावस्स य पासवं कुणदि ॥ 89. सण्णायो य तिलेस्सा इंदियवमदा य अत्तरुवाणि । गाणं च दुप्पउत्त मोहो पावप्पदा होंति ॥ 90. भावं तिविहपयारं सुहासुहं सुद्धमेव णायव्वं । असुह च अट्टरुदं सुहधम्मं जिणवरिदेहि ॥ 91. जो जाणादि जिरिंगदे पेच्छदि सिद्ध तधेव अरणगारे । जीवे य साणुकपो उवमोगो सो सुहो तस्त ।। 92. विसयकसानोगाढो दुस्सुदिदुच्चित्तदृढगोटिजुदो । उग्गो उम्मग्गपरो उवोगो जस्स सो असुहो । 93. सुद्ध सुद्धसहावं अप्पा अप्पम्मि तं च णायच्वं । इदि जिणवरहिं भणियं जं सेयं तं समायरह । 26 आचार्य कुन्दकुन्द

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