Book Title: Aacharya Kundakunda Dravyavichar
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 40
________________ 19. ववहारस्स दु श्रादा पोंग्गलकम्मं करेदि णेयविहं । तं चैव य वेदयदे पोग्गलकम्मं प्रणेयविहं || 80. अप्पा उवप्रोगप्पा उवप्रोगो णारणदंसणं भरिणदो । सो हि सुहो असुहो वा उवप्रोगो अप्परगो हवदि ॥ 81. जदि सो सुहो व असुहो ण हवदि श्रादा सयं सहावेण । संसारोवि रग विज्जदि सव्वेसि जीवकायाणं || 82. देवदजदिगुरुपूजासु चेव दारणम्मि वा सुसीलेसु । उववासादिसु रत्तो सुहोवोगप्पगो अप्पा || 83. सुहपरिणामो पुण्णं असुहो पावंति हवदि दोन्हं पोग्गलमेत्तो भावो कम्मत्तणं जीवस्स । पत्तो ॥ 84. रागो जस्स पसत्थो श्रणुकंपाससिदो य परिणामो । चितम्हि णत्थि कलुषं पुण्णं जीवस्स प्रसवदि ॥ 85. अरहंत सिद्धसाहुसु भत्ती धम्मम्मि जा य खलु चेट्ठा । प्रणुगमणं पि गुरूणं पत्थरागो त्ति वुच्चति ॥ 86. तिसिदं बुभुक्खिदं वा दुहिदं दट्ठूण जो दु दुहिदमणो । पडिवज्जदि तं किवया तस्सेसा होदि प्रणुकंपा ॥ 24 प्राचार्य कुन्दकुन्द

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