Book Title: Aacharya Kundakunda Dravyavichar
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Jain Vidya Samsthan
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22 जीवा संसारत्था णिवादा चेदणप्पगा दुविहा ।
उवमोगलक्खणा वि य देहादेहप्पवीचारा ॥
23 एदे सब्वे भावा, ववहारणयं पडुच्च भणिदा हु।
सव्वे सिद्धसहावा, सुद्धणया संसिदी जीवा ॥
24. अप्पा परिणामप्पा परिणामो णाणकम्मफलभावी ।
तम्हा णाणं कम्मं फलं च प्रादा मुणेदव्यो ।
25. कम्माणं फलमेक्को एक्को कज्जंतु णाणमध एक्को ।
चेदयदि जीवरासी चेदगभावेण तिविहेण ॥
26. परिणमदि चेयणाए आदा पुण चेदणा तिधाभिमदा ।
सा पुण णाणे कम्मे फलम्मि वा कम्मणो भरिणदा ॥
27 णाणं अथवियप्पो कम्मं जीवेण जं समारद्धं ।
तमणेगविधं भणिदं फलत्ति सोक्खं व दुक्खं वा ॥
आचार्य कुन्दकुन्द

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