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28 वे सभी जीव (जो) स्थावरकाय* (है) कर्म के (सुख-दु खात्मक)
फल को अनुभव करते है। (वे) (सभी) (जीव) (जो) स** (है) (शुभ-अशुभ) प्रयोजन से मिली हुई (चेतना) को (अनुभव करते है) (तथा) (वे) (सभी) (जीव) (जो) प्राणित्व को पार किए हुए (है), ज्ञान का (अनुभव करते है)। पृथ्वीकायिक, जलकायिक तथा वनस्पतिकायिक जीव (पञ्चास्ति
काय, 111) ** अग्निकायिक तथा वायुकायिक (एकेन्द्रिय जीव), द्वि-इन्द्रिय से
पचेन्द्रिय तक के जीव (पञ्चास्तिकाय, 112-117) 29 ये पृथिवीकायिकादि पाँच प्रकार के जीवसमूह मन के प्रभाव से
रहित (होते है) । (ये) जीव एक इन्द्रियवाले कहे गये (है)।
30. जिस प्रकार अण्डो मे वढते हुए जीव (होते है) एव गर्भ मे स्थित
तथा वेहोश मनुष्य (होते है), उसी प्रकार एक (स्पर्शन) इन्द्रियवाले जीव समझे जाने चाहिए।
31 शबूक, मातृवाह (क्षुद्र जन्तु विशेष), शङ्ख, सीप और विना पैर
वाले कीट जो स्पर्श और रस को जानते है, वे दो इन्द्रियवाले जीव (हैं)।
32 जू, कुम्भी (एक प्रकार का जहरीला कीट), खटमल, चीटी, विच्छ आदि कीडे तीन इन्द्रियवाले जीव (है)। (वे) स्पर्श, रस और गन्ध को जानते है ।
33 मच्छर, डास, मक्खी, मधुमक्खी, भौरा, पतगा आदि (जीव)
स्पर्श, रस, गन्ध और रूप को जानते है । अत वे (चार इन्द्रियवाले जीव है)।
34 देव, मनुष्य, नारकी और तिर्यञ्च वर्ण, रस, स्पर्श, गन्ध और
शब्द के जाननेवाले (होते है)। (ये) पचेन्द्रिय गतिशील जीव जल में गमन करनेवाले, स्थल पर गमन करनेवाले और आकाश मे गमन करनेवाले होते है।
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द्रव्य-विचार