Book Title: Aacharya Kundakunda Dravyavichar
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 16
________________ यह सर्वविदित है कि किमी भी मापा को मीसने के लिए व्याकरण का मान अत्यावश्यक है । प्रस्तुत गाथाए एव उनके व्याकरणिक विश्नेपण गे व्याकरण के साथ-साथ शब्दो के प्रयोग भी सीखने में मदद मिलेगी। गन्दी की व्याकरण और उनका अर्थपूर्ण प्रयोग दोनो ही भाषा मीलने के आधार होते है। अनुवाद एव व्याकरणिक विश्लेपण जैसा भी बन पाया है पाठको के समक्ष है। पाठको के सुझाव मेरे लिए बहुत ही काम के होगे । माभार आचार्य कुन्दकुन्द द्रव्य-विचार पुस्तक को तैयार करने मे ममयमार, प्रवचनसार, पचास्तिकाय, अष्टपाहुड, नियममार के जिन मम्करणो का उपयोग किया गया है उनकी सूची अन्त मे दी गई है। इन मम्करणो के मम्पादको के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करता हूँ। सुश्री प्रीति जैन, जनविद्या मम्थान, ने इस पुग्नक के अनुवाद को पटकर उपयोगी सुझाव दिए तथा इसकी प्रस्तावना को मचिपूर्वक पटा, इसके लिए आभार प्रकट करता हूँ। मेरी धर्मपत्नी श्रीमती कमलादेवी मोगाणी ने इम पुग्नक की गाथाम्रो के चयन मे जो सुझाव दिए उसके लिए अपना आभार व्यक्त करता हूँ। इस पुस्तक को प्रकाशित करने के लिए जनविद्या संस्थान, श्रीमहावीरजी के सयोजक श्री ज्ञानचन्द्रजी खिन्दूका ने जो व्यवस्था की है उनके लिए उनके प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करता हू । एच-7, चितरजन मार्ग, 'सी'स्कीम, जयपुर-302001 कमलचन्द सोगाणी 00 (iv)

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