Book Title: Aacharya Kundakunda Dravyavichar
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 21
________________ 7 धर्म, अधर्म, आकाश, काल और जीव ( द्रव्य) मूर्ति से रहित ( श्रमूर्तिक) (होते है ) । पुद्गल द्रव्य मूर्त (होता है) । उनमे जीव ही चेतन ( कहा गया है) । 8. जो पदार्थ जीवो द्वारा इन्द्रियो से ग्रहण किए जाने योग्य होते है, वे मूर्त (होते हैं)। शेप ( पदार्थ समूह ) श्रमूर्त होता है । चित्त दोनो को भली प्रकार से समझता है । - 9 सूक्ष्म से पृथिवी तक फैले हुए पुद्गल मे (अति सूक्ष्म से प्रति स्थूल तक ) ( मूर्त गुण) – वर्ण, रस, गघ और स्पर्श वर्तमान रहते है । ( इसके अतिरिक्त) (जो ) विभिन्न प्रकार का शब्द (है), वह भी पुद्गल है । 10-11 ( जो ) स्थान ( दिया जाता है), (वह) ग्राकाश का गुण ( है ), (जो) गमन मे निमित्तता ( है ), ( वह) धर्म द्रव्य का ( गुण) (है), और जो स्थिति (ठहरने) मे कारणता (है), (वह) तो धर्म के विरोधी (धर्म) द्रव्य का ( गुण) ( है ), ( जो ) परिणमन ( परिवर्तन) (होता है), (वह) काल (द्रव्य) का ( गुण) ( है ), (जो ) उपयोग ( ज्ञान - चैतन्य ) ( है ), ( वह ) ग्रात्मा का गुण कहा गया ( है ) | ( ये ) गुण सक्षेप से मूर्तिरहित ( श्रमूर्तिक) ( द्रव्यो) के समझे जाने चाहिये । 12 पुद्गल, धर्म, धर्म, श्राकाश और काल मे जीव के गुण नही (रहते है ), ( क्योकि ) उनमे श्रचेतनता कही गई ( है ) । (उनके विपरीत) जीव मे चेतनता ( मानी गई है) । 13 जीव ( श्रीर) पुद्गलराशि (दोनो ) साथ-साथ क्रियासहित होते है । किन्तु शेष (धर्म, अधर्म, आकाश और काल ) क्रियासहित नही ( होते हैं) । पुद्गल के निमित्त से जीव क्रियासहित (होते हैं) । और काल के निमित्त से ( पुद्गल ) स्कन्ध क्रियावान (होते हैं) । द्रव्य- विचार 5

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